बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर विजयदशमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। दूसरी मान्यता के अनुसार इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। दशहरे के दिन शस्त्र पूजा का भी विधान है। इसके अलावा शमी वृक्ष की पूजा को भी विजयादशमी के दिन विशेष शुभ माना गया है। भगवान श्री राम की रावण पर विजय के प्रतीक के रूप में रावण के पुतले को जलाया जाता है। जो कि अधर्म को नष्ट करने का प्रतीक है। दशहरे का त्योहार हमें यह बताता है कि शक्तियां हमेशा धर्म की स्थापना और भलाई के लिए होती हैं। आप कितने भी बलशाली क्यों न हों यदि आप अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हैं तो एक दिन यही शक्तियां नाश का कारण बन जाती है। भगवान श्री राम के जीवन से यही प्रेरणा प्राप्त होती है।
भगवान श्रीराम का जीवन हजारों वर्षों से आज भी प्रेरणादायक बना हुआ है क्योंकि रामनाम की महिमा अपार हैं। वे पुरुषों में उत्तम पुरुष हैं और उनका शासन आज भी रामराज्य के नाम से जाना जाता है। श्रेष्ठ गुणों से युक्त, पराक्रमी, कृतज्ञ, सत्यवादी और सब प्राणियों के हितैषी श्रीराम उस लोक में भी अनुकरणीय थे और आज भी हैं। वे नारायण के अवतार थे लेकिन धरा पर मर्यादा पुरुषोत्तम थे। जब महाराजा दशरथ ने उनको राजतिलक का शुभ समाचार दिया तो उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। इसके तत्काल बाद जब छोटी माता कैकेयी ने उनको चौदह वर्ष के वनवास की आज्ञा दी, तो भी वे ठीक वैसे ही बने रहे जैसे कि राजतिलक के शुभ समाचार को सुनने के समय थे। जैसे किसी भी सुख या दुःख का उनके लिए समान महत्त्व है। वनवास में भी उन्होंने उसी प्रकार से कर्तव्यों का निर्वहन किया जिस प्रकार कि वे राजभवन में करते थे।
यदि आप वाल्मिकीय रामायण पढ़ेंगे तो उसमें भगवान श्रीराम को पुरुष लिखा है (भगवान नहीं)। तथापि श्रीराम की अक्षुण कीर्ति से यह निश्चित है कि वे भगवान विष्णु के अवतारी थे। तथापि उनका व्यवहार सर्वदा एक साधारण पुरुष की ही तरह रहा। वह इसलिए कि लोगों के व्यवहार में भी मर्यादा हो-यथा राजा तथा प्रजा। रावण वध भी श्रीराम ने उस समय में प्रचलित परंपराओं का निश्चित पालन करते हुए ही किया था। फलस्वरूप आमजन में उनकी छवि एक उत्तम पुरुष की बनी।
हालांकि भारत में दशहरे के त्योहार की मान्यता के पीछे और भी बहुत से कारण मिल जाते हैं लेकिन भगवान श्रीराम के द्वारा रावण वध ही ज्यादा प्रचलित है। वैसे भी भारत में जिन रामलीलाओं का मंचन होता है उनका समापन भी दशहरे के दिन ही होता है। हालांकि दशहरे का महत्व रावण वध के अलावा भी बहुत सी घटनाओ से जुड़ा हुआ है जैसे जिन देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की नवरात्रा में पूजा की जाती है उन्हें दशहरे के लिए समीप की नदियों या समुद्र में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन से पूर्व एक जुलूस के रूप में प्रतिमाओं को ले जाया जाता है। विभिन्न वाद्य यंत्रों की गूंज के साथ धार्मिक उल्लास के साथ इस जुलूस में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। वास्तव में दशहरे के साथ ही पटाखे फोड़ने का आगाज हो जाता है। वर्तमान में रावण का जो पुतला बनाया जाता है उसमें बड़ी मात्रा में पटाखों को रखा जाता है जिससे रावण दहन के कार्यक्रम में उत्साह और उमंग का संचार हो सके।
भारत के बहुत से राज्यों में प्रथम नवरात्र से ही भगवान श्री राम की लीला का मंचन शुरू हो जाता है। रामलीला का मंचन मूलतः उत्तर भारत में ज्यादा प्रचलित है। राजधानी दिल्ली की रामलीला भारत भर में प्रसिद्ध है। दूसरे भागों में भी समाज के विभिन्न वर्गों में रामलीला का मंचन होता है। रामलीला मंचन में एक बात अक्सर देखी जा सकती है कि इसमें अभिनय करने वाले कलाकारों में सभी समाज के लोग होते हैं। कुछ जगहों पर मुस्लिम कलाकार भी रामलीला में अभिनय करते हैं। रामलीला वास्तव में भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। जिसका समापन दशहरे के दिन रावण दहन के साथ संपन्न होता है।
जैसा कि मैं बता चुका हूं कि दशहरा अपने विविध स्वरूपों के कारण प्रसिद्ध है। इसके साथ शस्त्र पूजा का विधान भी जुड़ा हुआ है। वैदिक काल से ही शस्त्र पूजा होती आई है। कुछ विद्वानों का समझना है कि रामायण के समय भी शस्त्र पूजा का विधान रहा है। क्षत्रिय समाज आज भी सांकेतिक तौर पर शस्त्र पूजा करता है। शस्त्र पूजा वास्तव में हथियारों की देखभाल से जुड़ा हुआ है। आप इस बात को इस तरह से समझें कि आधुनिक युग में भी भारत के रक्षा मंत्री दशहरे के दिन किसी आर्मी केम्प में शस्त्र पूजा करते हैं। शस्त्र पूजा में मूलतः जया और विजया नाम की दो योगनियों की पूजा की जाती है। शस्त्र पूजा में रोली, मोली, धूप, दीप, अक्षत और पुष्प आदि पूजन सामग्री काम में ली जाती है।
विक्रम संवत 2081 के आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का आरम्भ शनिवार, प्रातः 10 बजकर 58 मिनट, तद्नुसार अंग्रेजी दिनांक 12 अक्टूबर 2024 को होगा। इसी दिन श्रवण नक्षत्र भी है जो कि दशहरे के त्योहार में आवश्यक समझा गया है। क्योंकि दशमी तिथि और श्रवण नक्षत्र के योग से ही विजय दशमी मनाए जाने की परम्परा है। हालांकि सूर्योदयी दशमी तिथि रविवार, 13 अक्टूबर 2024 को है। लेकिन इस दिन श्रवण नक्षत्र नहीं है। इसलिए बिना किसी संकोच और शंका के दशहरा का त्योहार और पूजा 12 अक्टूबर को ही होने शास्त्र सम्मत है।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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