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कब मनाई जाएगी गणेश चतुर्थी, जानें शुभ मुहूर्त

Astrologer Satyanarayan Jangid

श्री गणेश जी महाराज को प्रथम पूज्य माना जाता है। इसलिए किसी भी काम की शुरुआत को अक्सर ''श्रीगणेश करना'' भी कहा जाता है। लगभग समस्त भारत में गणेश जी पूज्य हैं। इस दिन मंदिरों में गणेशजी की प्रतिमा को प्रसाद चढ़ाया जाता है। और सुख और समृद्धि की मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है। वाहन आदि की खरीद के लिए यह दिन सर्वमान्य है। इसलिए बड़ी संख्या में लोग वाहन खरीदने के लिए इस दिन का इंतजार करते हैं।

महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रदेशों में गणेश चतुर्थी का त्योहार विशेष हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यहां पर गणेश चतुर्थी के दिन मिट्टी से गणेश जी की प्रतिमा का निर्माण किया जाता है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक पूजा की जाती है और उसके बाद उसका विसर्जन किया जाता है। इसलिए आप इसे नौ दिनों तक चलने वाला त्योहार भी कह सकते हैं। अंतिम दिन इस गणेशजी की प्रतिमा को किसी नदी, तालाब या फिर समुद्र में विसर्जित किया जाता है। इससे पहले पूजा में बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं और प्रतिमा को बड़े जुलूस और धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए विसर्जित स्थान पर ले जाया जाता है। यह बड़ा ही मनोरम दृश्य होता है। लोग नौ दिनों की पूजा में स्वयं का आत्मिक रूप से श्रीगणेश को आत्मसात कर लेते हैं। इसलिए उनसे बिछड़ने के दुःख और पुनः आने की विनीत के साथ विसर्जन किया जाता है। इस अवसर पर समूचा जन समुदाय ''गणपति बप्पा मोरया'' का सामूहिक उद्घोष करता है। जिसका अर्थ है कि भगवान श्री गणेशजी आप अगले वर्ष पुनः आएं।

क्या है पौराणिक कथाएं

वैसे तो गणेशजी के जन्म से जुड़ी हुई बहुत सी कथाएं पुराणों और दूसरे धार्मिक ग्रंथों वर्णित है। लेकिन एक कथा सबसे लोकप्रिय है। आम जन में यही कथा अधिक प्रचलित भी है। इसके अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी। लेकिन उस समय कोई द्वारपाल उपस्थित नहीं था। तब माता ने अपने शरीर के मैल से एक बालक उत्पन्न किया और उसे द्वार की सुरक्षा हेतु नियुक्त कर दिया। उसे सख्त निर्देश था कि चाहे कोई भी हो, वह अंदर नहीं आने पाए। कुछ समय पश्चात भगवान शंकर आए। उन्होंने अंदर जाने का प्रयास किया तो बालक ने उन्हें रोक दिया। उसके इस रूखे वर्ताव से भगवान शिव और उनके असंख्य गण क्रोधित हो गये। शिव के अनुरोध पर भी बालक ने जब अपनी जिद्द नहीं छोड़ी तो शिव के गणों ने उससे युद्ध शुरू कर दिया। लेकिन गण अनेक कोशिशों के बाद भी बालक को पराजित नहीं कर पाए। इस पर शिव को क्रोध आया और उन्होंने अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया। जब माता को इसकी सूचना मिली तो वे क्रोध की ज्वाला में जलने लगीं। भगवती के इस रूप में आने से चहुँ दिशाओं में प्रलय का वातावरण बनने लगा। सभी देवता और असुर किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त हो गये और उन्होंने नारद मुनि से स्थिति को नियंत्रण में लेने का अनुरोध किया। नारद मुनि ने जगदम्बा की स्तुति से उन्हें शांत किया। लेकिन माता ने अपने पुत्र को पुनः जीवित देखने की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान शिव ने श्री विष्णु से अनुरोध किया कि वे उत्तर दिशा की तरफ जाए और जो भी पहला जीव मिले उसका सिर काटकर ले आएं। सर्वप्रथम हाथी मिला और श्री विष्णु उसका सिर ले आए। शिव ने उसी मस्तिष्क को बालक के धड़ पर स्थापित करके उसे पुनर्जीवित कर दिया। तब सभी देवताओं ने उसका नाम गजानन रखा और उसे अग्रपूजा का आशीर्वाद दिया।

कब मनाई जाएगी गणेश चतुर्थी और कब है विसर्जन

यद्यपि भिन्न पुराणों के अनुसार श्री गणेश जी के जन्म की तिथि के संबंध में कुछ मतभेद भी प्राप्त होते हैं लेकिन आधुनिक युग में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को ही सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। श्री भाद्रपद शुक्ल पक्षे, चतुर्थी तिथि संवत् 2081 शनिवार, अंग्रेजी दिनांक 7 सितम्बर 2024 को है। इसलिए इसी दिन श्री गणेशजी महाराज का जन्मोत्सव मनाया जायेगा। हालांकि चतुर्थी तिथि की शुरुआत दिनांक 6 सितम्बर 2024 को दोपहर तीन बजे के उपरान्त हो जायेगी। तथापि किसी भी तिथि का महत्व उदया तिथि से होता है। जब कोई त्यौहार तिथि पर आधारित हो और दूसरी कोई शास्त्रीय या धार्मिक वर्जनाएं न हो तो हमेशा सूर्योदय के समय जो तिथि उपलब्ध हो, उसी तिथि को त्योहार विशेष का आयोजन करने का विधान है। इसलिए इस वर्ष 7 सितम्बर को श्री गणेश जी चतुर्थी का त्योहार मनाया जाना शास्त्रोक्त है।

17 सितम्बर 2024 को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि है। इसे अनन्त चतुर्दशी तिथि भी कहा जाता है। 7 सितम्बर को जो प्रतिमा स्थापित की जायेगी। उसका विसर्जन अनंत चतुर्दशी को किया जायेगा। 17 सितम्बर 2024 को प्रातः 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक प्रतिमा विसर्जन का शुभ मुहूर्त है।

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