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Acharya Prashant : जलवायु परिवर्तन के चलते वायनाड और अन्य क्षेत्रों में भूस्खलन पर आचार्य प्रशांत की चेतावनी: ‘यह घटना अचानक नहीं, निरंतर हो रही है’

Abhishek Kumar

Acharya Prashant : भूस्खलन और उसकी भयावहता

प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक एवं पूर्व सिविल सेवा अधिकारी आचार्य प्रशांत ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के चलते केरल के वायनाड, हिमाचल, उत्तराखंड समेत अनेक राज्यों में भारी बारिश के कारण भयानक भूस्खलन हुआ, जिसकी वजह से सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो चुकी है। कुछ लोग अभी भी लापता हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह तक आ रहा है कि लोगों के कटे हुए अवशेष भी मिले हैं। इस भारी भूस्खलन को पिछले कई सालों में नहीं देखा गया है। शरीर के अंगों का अलग हो जाना खुद में बताता है कि बहाव कितना तेज था, उसमें चट्टानें और बड़े-बड़े पेड़ भी टूटकर बह रहे थे। और जब बहुत ज्यादा बहाव के साथ बॉडी को टकराया होगा, तभी यह दर्दनाक हादसा हुआ।

जलवायु परिवर्तन पर सतही दृष्टिकोण

आचार्य प्रशांत ने कहा कि क्लाइमेट कन्वर्सेशन की समस्या यही है कि बात सिर्फ तब होती है जब कोई भयानक दुर्घटना हो जाती है। हम समस्या को एक एपिसोड बना देते हैं, और जब कुछ भयानक होता है, तो पूरा राष्ट्र और विश्व उस ओर देखता है और सहायता करना चाहता है, लेकिन यह केवल उन दिनों की बात नहीं है। जो हो रहा है, वह लगातार हो रहा है।

वायनाड के वन कवर और टी प्लांटेशन का प्रभाव

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से वायनाड का फॉरेस्ट कवर दो तिहाई कम हो गया है, जिससे मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है। इसी अवधि में टी प्लांटेशन का क्षेत्र अठारह गुना बढ़ गया है।

ध्यान देने की आवश्यकता और सतही मीडिया कवरेज

आचार्य प्रशांत ने कहा कि यह घटना एक दिन में नहीं हुई है कि अचानक से कोई दैवीय कहर टूटा हो। यह लगातार हो रहा था, पिछले पचहत्तर साल से और हम ही कर रहे थे। लेकिन हम इसके बारे में बात नहीं करना चाहते। मीडिया में जो थोड़ी बहुत बातें हो रही हैं, वे सतही हैं। कोई गहराई में जाकर नहीं देखना चाहता कि वायनाड, उत्तराखंड, हिमाचल में जो हुआ, वह एक निरंतरता है, एक बिंदु नहीं है।

लाइफस्टाइल डिजीज और क्लाइमेट चेंज का संबंध

आचार्य प्रशांत(Acharya Prashant )ने कहा कि हार्ट अटैक जैसी घटनाएं भी लाइफस्टाइल डिजीज हैं, और क्लाइमेट चेंज भी एक लाइफस्टाइल डिजीज है। दोनों का बहुत बड़ा रिश्ता हमारे चुनावों से है कि हम कैसे जी रहे हैं। हार्ट अटैक या वायनाड जैसी घटनाएं इस पर निर्भर करती हैं कि हमने पिछले वर्षों में क्या किया है।

क्लाइमेट इनजस्टिस और गरीबों पर प्रभाव

उन्होंने(Acharya Prashant )कहा कि वायनाड में भूस्खलन की घटनाएं सबसे ज्यादा गरीबों को प्रभावित करती हैं, जिनका इस संकट में कोई दोष नहीं है। यह क्लाइमेट इनजस्टिस है, जहां जो कर रहे हैं, उनके नाम सामने नहीं आते और जो प्रभावित होते हैं, वे गरीब होते हैं।

असंवेदनशीलता और अनकही सहमति

आचार्य प्रशांत ने कहा कि क्लाइमेट चेंज की समस्या को लेकर एक अनकही सहमति बन चुकी है कि गरीबों की जान की कीमत नहीं है। हम अपने लिए सुरक्षित आसरे तैयार कर लेंगे, और बाकी जो मर रहे हैं, उनका दोष उनका ही है।

Acharya Prashant : हमारी कार्रवाइयों के दुष्परिणाम

"एक बात हमें बहुत साफ समझनी पड़ेगी: हमने जो बहुत सारे काम किए हैं, उनका ही प्रभाव वायनाड जैसी दुर्घटनाओं के रूप में सामने आता है। हमने ही वहां का नैचुरल ग्रीन कवर, फॉरेस्टेशन, हटाया। बहुत लोगों को लगता है कि हरा-भरा दिख रहा है, तो ग्रीन कवर है, जबकि ग्रीन कवर की गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है।

पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी

आप अगर पश्चिमी घाट के क्षेत्र में जाएंगे, जैसे कोंकण, गोवा और केरल, तो पाएंगे कि वहां बड़े-बड़े वृक्ष होते हैं, जो इकोलॉजिकल हॉटस्पॉट हैं। इन वृक्षों की जड़ें गहरे तक जाती हैं और मिट्टी को बांध कर रखती हैं। चाय और कॉफी की खेती के लिए हमने छोटे पौधों की जगह बड़े वृक्षों को काटा। ग्रीन कवर का मतलब सिर्फ हरे रंग से नहीं होता, बल्कि उसकी गुणवत्ता पर निर्भर करता है।

वृक्षों की कटाई और उनके प्रभाव

जो पूरा डिफॉरेस्टेशन का काम हुआ, वह हमने किया। हमने चाय और कॉफी के प्लांटेशन के लिए वृक्षों को काटा और बड़े-बड़े कंक्रीट के निर्माण किए। पहले से रिपोर्ट्स आ चुकी थीं कि केरल का 50 प्रतिशत क्षेत्र लैंडस्लाइड प्रोन है, लेकिन इसे रोकने के प्रयास नहीं किए गए।

क्लाइमेट इनजस्टिस और संपन्न वर्ग

जितने लोग इससे लाभ उठा रहे थे, वे धनाड्य और प्रिविलेज्ड वर्ग से थे। गरीबों की जान की कोई कीमत नहीं है। यह क्लाइमेट कटास्ट्रॉफी का फिनोमिना है, और आगे भी ऐसा ही रहेगा। जो पूंजी और शक्ति को नियंत्रित करते हैं, उनमें सहमति बन चुकी है कि क्लाइमेट चेंज तो होगा ही, और मरेंगे तो गरीब मरेंगे।

सहमति और असामाजिक सोच

आचार्य प्रशांत(Acharya Prashant )ने कहा कि यह कोई खुलकर नहीं बोल सकता, खासकर लोकतांत्रिक देश में। लेकिन अंदर ही अंदर यह सहमति बन चुकी है कि ग्लोबल वार्मिंग को सहन किया जाएगा। गरीबों की जान बचाने के लिए हम अपने होटल्स नहीं बंद करेंगे, जीडीपी ग्रोथ को दाँव पर नहीं लगाएंगे। जीडीपी बड़ी बात है, और किसी की जान जाती है, खासकर गरीबों की, तो क्या फर्क पड़ता है?

सुरक्षित आसरे और पूंजी की भूमिका

पूँजीपति अपने लिए सुरक्षित आसरे तैयार कर लेंगे, चाहे इसी प्लैनेट पर हो या किसी और पर। बाकी लोग मरेंगे, तो मरने वालों की किस्मत है, क्योंकि हमारे पास पूंजी और शक्ति है।

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