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IAS का सपना : Acharya Prashant ने UPSC कोचिंग संस्थानों के ग्लैमर और युवाओं के शोषण पर उठाए सवाल

Abhishek Kumar

 Acharya Prashant : डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं हजारों युवा

प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक एवं पूर्व सिविल सेवा अधिकारी आचार्य प्रशांत ने कहा है कि कोचिंग संस्थान पहले युवाओं को सरकारी नौकरी के भ्रमजाल में फंसाकर बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं और उसके बाद उनका जमकर शोषण करते हैं। कोचिंग संस्थानों को इतना ग्लैमरस कर दिया गया है कि छोटी-सी भी सरकारी नौकरी का मीडिया में जमकर प्रचार किया जाता है। इंटरव्यू होते हैं, पूरे-पूरे पेज के विज्ञापन जारी किए जाते हैं। फिर जब कोई बहुत ही दुखद घटना घट जाती है, तब हम इन मुद्दों को उठाते हैं। आज जो मुद्दे मीडिया में छाए हुए हैं, ये बातें बहुत पहले से होनी चाहिए थीं। हम इंतजार करते हैं कि कोई बड़ी दुखद दुर्घटना हो जाए, तभी बात करेंगे। देश में एक ही धर्म चलता है, उस धर्म का नाम है सरकारी नौकरी, और उस धर्म में जो उच्चतम वर्ण है, वह है यूपीएससी वाली आईएएस, आईपीएस की नौकरी। जब चयन नहीं होता, तो युवा डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।

आचार्य प्रशांत ने कोचिंग संस्थानों के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस पूरी त्रासदी का मूल सिद्धांत यही है कि हजारों-लाखों युवा कई-कई साल तक सरकारी नौकरी की उम्मीद में लाखों रुपये खर्च करते हैं। ऐसे ही यह इंडस्ट्री 60 हजार करोड़ तक पहुंच गई है। यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए हर साल करीब 10 लाख युवा फॉर्म भरते हैं, जबकि हर साल वैकेंसी सिर्फ एक हजार के आसपास होती है। इसमें आईएएस की वैकेंसी 180 और आईपीएस की 200 होती है। हमें लगता है कि किसी एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में घटना हो गई है, वह उस कोचिंग इंस्टीट्यूट की बात है। यह उस कोचिंग इंस्टीट्यूट की बात नहीं है, यह पूरी इंडस्ट्री की बात है। यह पूरी इंडस्ट्री की भी बात नहीं है, यह उन सभी युवाओं की बात है जो उस इंडस्ट्री में खरीदार की तरह मौजूद हैं। यह उन सभी युवाओं की भी बात नहीं है, यह पूरे समाज की बात है जहाँ उन युवाओं को इसी दिशा में जाने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह एक खतरनाक सामाजिक बीमारी है जिसके एकदम त्रासदीपूर्ण परिणाम हैं, जो बस कभी-कभार देखने को मिलते हैं, प्रकट होते हैं। बाकी समय हमें लगता है कि बीमारी है ही नहीं, सब कुछ ठीक-ठाक है।

कोचिंग संस्थानों का माहौल

जिस जगह पर ये सब कोचिंग संस्थान होते हैं, वहाँ क्या नजारा है? एक बार को थोड़ा सा इनविजन करो, हजारों-लाखों बेरोजगार युवा वहां घूम रहे हैं और कई-कई साल तक घूम रहे हैं, कई-कई साल तक।

आवेदकों की हकीकत

आचार्य प्रशांत ने कहा, "उनको कई बार स्टूडेंट्स बोला जाता है, वो स्टूडेंट्स भी नहीं हैं, वो आवेदक हैं। आप किसी नौकरी में आवेदन करते हो, स्टूडेंट थोड़ी हो जाते हो। तो बच्चे भी नहीं हैं, वो छात्र भी नहीं हैं, अभ्यर्थी हैं, प्रार्थी हैं, आवेदक हैं और ऐसे लाखों में हैं। जहाँ हादसा हुआ है, वहां भी हैं और जगहों पर भी हैं, दिल्ली में, देश के अन्य शहरों में भी हैं।"

कोचिंग का कल्ट

ये पूरा एक कल्ट है, जिसमें किस चीज की स्तुति की जा रही है? इसमें भगवान कौन है? इसमें भगवान है एक कॉन्सेप्ट जिसका नाम है आराम की जिंदगी। इसमें पुजारी कौन है? ये जितने कोचिंग मास्टर्स हैं। और इसमें मंदिर क्या है? कोचिंग इंस्टीट्यूट। ये एक तरह का धर्म है जिसका पालन हिंदुस्तान की लगभग पूरी आबादी कर रही है। हर घर में यह अरमान पल रहा है कि मेरा लड़का या लड़की आईएएस बन जाए।

धर्म का लक्ष्य

इस धर्म का लक्ष्य मुक्ति नहीं है, इस धर्म का लक्ष्य आराम, अय्याशी, भुक्ति है। नहीं तो क्यों कोई दस-दस साल लगाएगा? वो कहते हैं, दस साल लगाकर भी अगर मिल गया तो फिर बाकी जिंदगी तो ऐश है।

स्वर्ग का कॉन्सेप्ट

उन्होंने कहा कि ठीक वैसे जैसे धर्मों में स्वर्ग का कॉन्सेप्ट होता है और कहते हो कि जितना पुण्य लगाओगे, स्वर्ग पाओगे, पुण्य कमाते चलो तो स्वर्ग मिलेगा। और पुण्य कैसे कमाया जाता है? दान करके। तो लाखों-करोड़ का चंदा सब धर्म स्थलों पर इकट्ठा होता रहता है।

कोचिंग संस्थानों की वित्तीय स्थिति

अखबार में तो रोज जो पूरा फ्रंट पेज होता है, वो किसी आईएएस कोचिंग इंस्टीट्यूट ने ले रखा होता है। सोचो, इनके पास कितना ज्यादा पैसा है। ये पैसा राष्ट्रनिर्माण में खर्च हो रहा है? हम कहते हैं कि शादी पर जबरदस्ती का दिखावा करना फिजूल खर्ची है। और ये जो हजारों करोड़ जा रहे हैं और देश की जवानी जा रही है, यह फिजूल खर्ची नहीं है? इसमें क्या वैल्यू एडिशन हो रहा है?

कोचिंग की वास्तविकता

उतनी ही सीटें हैं, कोचिंग हो या न हो, वो सीटें भर ही जाएंगी। कोचिंग के होने से बस इतना हुआ कि छात्र और सीट के बीच में कोई आ गया जो अब हजारों करोड़ कमा रहा है।

व्यापक कोचिंग उद्योग

"उन्होंने कहा कि बात यूपीएससी कोचिंग पर ही लागू नहीं होती है। इससे कई गुना ज्यादा बढ़ी तो ये इंजीनियरिंग और मेडिकल की कोचिंग है। और इतना बड़ा अभी स्कैम हुआ था उसमें। इनके होने से क्या सीटें बढ़ जा रही हैं? सीटें भी उतनी हैं, उतनी ही भरी जाएंगी, तो बीच में कोचिंग क्या कर रही है?"

कोचिंग का प्रभाव

"एक तो यह कि हादसा किसी कोचिंग की इमारत में हुआ है, और दूसरी बात यह कि कोचिंग आर्टिफिशियली इन्फ्लेट कर देती है एप्लिकेंट्स की संख्या को। सौ सीटें हैं, सौ सीटों के लिए हो सकता है एक लाख लोग आवेदन करते, पर कोचिंग वाले विज्ञापन देकर 10 लाख लोगों से आवेदन करवा लेते हैं। नौ लाख लोग जिनको आवेदन करना भी नहीं चाहिए था, वो सिर्फ इसलिए उस रेस में घुस जाते हैं क्योंकि उन पर विज्ञापनों की वर्षा कर दी गई और ऐसा माहौल बना दिया गया।"

युवाओं के स्वर्णिम वर्ष

युवाओं ने अपनी जवानी के स्वर्णिम वर्षों का सही इस्तेमाल किया होता तो वे अनंत ऊँचाई को छू सकते थे। पर वह सही इस्तेमाल की जगह इनकी जवानी जा रही है मुखर्जी नगर में, डिप्रेशन में लौटते हुए और कुछ हादसों में, जैसे अभी हुआ बहुत दुखद हादसा, कुछ हादसों में अपनी जान गंवाते हुए। भारत में अभी भी व्यापार एक सस्ती चीज है। कम पैसों में भी व्यापार की शुरुआत करी जा सकती है। वहाँ पर कम से कम पांच लाख, दस लाख और शायद बीस लाख खर्च करें, तुमने इन सालों में वहाँ पर, इतने पैसों में अपना कोई व्यापार नहीं शुरू कर पाते? सब कर लेते, लेकिन भीतर ये धारणा भर दी गई है कि यूपीएससी ही तो धर्म है।

कोचिंग संस्थानों का योगदान

और वह जो धारणा है, वह भरने में कौन आगे है सबसे ज्यादा? यही कोचिंग इंस्टीट्यूट। इन्होंने इतना ग्लैमराइज कर दिया है कि सब लगे हुए हैं इसी में कि हमें भी चाहिए। सौ लोगों ने जुआ खेला, एक जीत गया। सिर्फ अगर उसका नाम ले आओगे और मैगजीन में छाप दोगे और सोशल मीडिया में दिखाओगे बार-बार देखो, इसने जुआ खेला और इसको इतने का फायदा हो गया, तो ऐसा लगा कि जुआ भी बहुत अच्छी बात है।

सफलता और असफलता

एक आदमी को ही दिखाओगे, वो 99 छुपा जाते हो, जो बर्बाद हुए। जो एक जीत गया, और जो 99 थे जो बर्बाद हो गए, डिप्रेशन में चले गए, न जाने कहाँ चले गए, उनकी शक्लें कोई नहीं दिखाता। सबको ये बताया जाता है कि तुम्हारे सपने भी साकार हो सकते हैं।

भारत की शिक्षा व्यवस्था पर आचार्य प्रशांत की आलोचना

आचार्य प्रशांत ने कहा कि आज भारत कहाँ है। और देखो कि कोरिया, सिंगापुर, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, जापान और चीन कहाँ हैं। जापान तो 1945 में पूरा तबाह हो गया था। वजह यह है कि उन देशों ने शिक्षा में निवेश किया। उन्होंने अपना पब्लिक एजुकेशन सिस्टम जबर्दस्त बनाया। भारत ने शिक्षा में निवेश नहीं किया। जो ग्रासरूट एजुकेशन है और जो देश के इंटीरियर्स में रिमोट एरियाज में एजुकेशन है, उस पर ध्यान नहीं दिया गया।"

शिक्षा में निवेश की कमी का परिणाम

उसका नतीजा क्या है? उसका नतीजा यह है कि देखो आज जापान और कोरिया को तो छोड़ दो, देखो कि आज मलेशिया और इंडोनेशिया भी हमसे कितना आगे हैं। चीन में नई-नई टेक्नोलॉजी विकसित होती है क्योंकि उनके पास शिक्षा है। हमारे यहाँ पर भी कुछ है जो हर साल नया-नया आता है, वहाँ पर नई-नई हर साल टेक्नोलॉजीज आती हैं। नई सर्विसेज, नए प्रोडक्ट्स, नई चीज़ें आती हैं। हमारे यहाँ एक ही चीज़ है हर साल जो नई-नई आ जाती है – नए-नए रंग के और नए-नए तरीके के बाबा।"

अंधविश्वास और बाबा

भारत हर साल नए-नए तरीके के बाबा पैदा करता है। ये इस बात का परिणाम है कि हमने शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया। कोई किसी स्टाइल का बाबा है, कोई किसी रंग का बाबा है। हर तरीके के आते हैं। भारत दुनिया को बस इसी चीज़ में कॉन्ट्रीब्यूट कर रहा है। नए-नए तरीके के बाबा जो नए-नए तरीके से अंधविश्वास फैला रहे हैं। क्योंकि हमने एजुकेशन पर कभी ध्यान नहीं दिया, उसी एजुकेशन पर ध्यान न देने का एक परिणाम यह भी है – जो पूरी कोचिंग वाली गड़बड़ है। चीन में थोड़ी चलती है। क्या चीन के पास ब्यूरोक्रेसी नहीं है? उनकी तो और सेंट्रलाइज्ड होती थी। इकोनोमी धीरे-धीरे करके उन्होंने खोल ली है। और जब इकोनोमी सेंट्रलाइज्ड होती है तो ब्यूरोक्रेसी और ज्यादा पावरफुल होती है। पर चीन में नहीं चलता ये कोचिंग वाला कार्यक्रम।

मीडिया की स्थिति और शिक्षा की भूमिका

हमारी मीडिया का स्तर इतना बुरा है, हमारा कोई टीवी चैनल खोल लो, उल्टी करने का जी हो जाएगा। क्यों हो पा रहा है वैसा मीडिया, इतनी घटिया चीज़ें कैसे दिखा पा रहा है? क्योंकि आप शिक्षित नहीं हैं, क्योंकि आपको सही मुद्दों का पता ही नहीं। आप मीडिया से नहीं बोलोगे कि क्लाइमेट चेंज क्या है, क्योंकि आपने पढ़ा नहीं है क्लाइमेट चेंज, क्योंकि पढ़ने की आपकी आदत ही नहीं डाली गई है।

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