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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने लोकसभा चुनाव में भाजपानीत महायुति को बिना शर्त समर्थन की घोषणा की है, लेकिन खुद इस चुनाव से किनारा कर लिया है। इसका कारण बताया जा रहा है कि भाजपा ने उन्हें अपने चुनाव चिह्न 'कमल' पर लड़ने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्हें यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था। राज ठाकरे ने मंगलवार को अपनी शिवाजी पार्क की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्थन देने की घोषणा की है, लेकिन बातों ही बातों में कई ऐसे इशारे भी कर दिए, जिनसे उनकी पार्टी के लोकसभा चुनाव न लड़ने का कारण भी स्पष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उनके साथ मिलकर काम करने की बात करते रहे हैं। यह अफवाहें भी उड़ती रही हैं कि मैं शिवसेना शिंदे गुट का अध्यक्ष बनने जा रहा हूं, लेकिन मैं बालासाहब ठाकरे को छोड़कर किसी और के हाथ के नीचे (अधीन) काम नहीं कर सकता।
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उन्होंने मंच पर लगे अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न 'रेल का इंजन' की ओर इशारा करते हुए अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि ये चुनाव चिह्न आपका कमाया हुआ है। इसे हम दांव पर नहीं लगा सकते। हमें किसी और दल का प्रमुख बनने का भी शौक नहीं है। हम मनसे अध्यक्ष बनकर ही खुश हैं। मनसे से जुड़े सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों जब राज ठाकरे की भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से बात चल रही थी, तो उन्हें भाजपा के चुनाव चिह्न 'कमल' पर लोकसभा की एक सीट से मनसे को चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव दिया था। इसके अलावा उन्हें राज्यसभा और विधान परिषद की सीटें भी देने की बात हुई थी। लेकिन राज ठाकरे को अपना चुनाव चिह्न छोड़कर किसी और दल के चिह्न पर चुनाव लड़ना मंजूर नहीं था।
राज ठाकरे की पार्टी मनसे को 2006 में उसकी स्थापना के बाद से अब तक बड़ी राजनीतिक सफलता भले न मिली हो, लेकिन पार्टी गठन के शुरुआती दिनों में वह अपनी ताकत का अहसास कराने सफल रहे थे। 2007 के मुंबई महानगरपालिका (मनपा) चुनाव में उन्हें सात सीटें हासिल हुईं। 2009 के लोकसभा चुनाव में मुंबई, ठाणे, नासिक, कल्याण और पुणे की 11 लोकसभा सीटों पर खड़े हुए मनसे के प्रत्याशियों को सफलता भले नहीं मिली, लेकिन 10 सीटों पर उन्हें सवा से डेढ़ लाख तक वोट मिले और उन सीटों पर वह शिवसेना को हरवाने में सफल रहे थे। 2009 के ही विधानसभा चुनावों में मनसे के 13 विधायक भी चुनकर आए। 2012 के मुंबई मनपा चुनाव में उनके पार्षदों की संख्या बढ़कर 28 हो गई थी।
नासिक में तो मनसे का महापौर तक बन गया थ, लेकिन सफलता का रिकार्ड पार्टी भविष्य में कायम नहीं रख सकी। लोकसभा चुनाव तो वह 2014 में भी लड़े। लेकिन उस समय की प्रबल मोदी लहर में उनके दस के दसों प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। 2019 में तो उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा ही नहीं।