जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने शनिवार को शोपियां जिले में एक कथित 'फर्जी' मुठभेड़ में शामिल होने के लिए सेना के एक कप्तान सहित तीन लोगों के खिलाफ एक अदालत में आरोप पत्र (चार्जशीट) दायर किया।
यह आरोप पत्र जम्मू एवं कश्मीर के शोपियां में हुई एक कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गए तीन नागरिकों से संबंधित मामले में दायर किया गया है।
पुलिस ने कहा कि आरोप पत्र शोपियां के प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में पेश किया गया है।
पुलिस उपाधीक्षक वजाहत हुसैन ने कहा, 'इस मामले के तीन आरोपियों में 62 राष्ट्रीय राइफल्स के कैप्टन भूपिंदर, पुलवामा निवासी बिलाल अहमद और शोपियां निवासी ताबिश अहमद शामिल हैं।'
हुसैन मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) का नेतृत्व कर रहे हैं।
सेना ने गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा था कि 18 जुलाई, 2020 में अमशीपोरा (शोपियां) मुठभेड़ के संबंध में सबूत एकत्र करने की प्रक्रिया पूरी हो गई है, जिसमें तीन मजदूर मारे गए थे, हालांकि उनका किसी आतंकवादी गतिविधि से कोई संबंध नहीं था।
सेना ने कहा कि इस मामले में आगे की कार्रवाई के लिए कानूनी विशेषज्ञों की सहायता लेने की बात भी कही थी।
दरअसल, सेना ने 18 जुलाई 2020 को शोपियां के अमशीपोरा में एक मुठभेड़ में तीन अज्ञात आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया था। सोशल मीडिया पर मारे गए आतंकवादियों की तस्वीरें आने के बाद उनके परिजनों ने इसका खंडन किया था। परिजनों के मुताबिक तीनों युवकों का आतंकवादियों से कोई संबंध नहीं था और वे शोपियां में श्रमिक के रूप में काम कर रहे थे। ये तीन लोग जम्मू संभाग (डिविजन) के राजौरी जिले से संबंध रखते थे।
परिवार की ओर से आपत्ति जताए जाने के बाद पुलिस ने तीनों परिवारों की डीएनए की जांच भी की थी और इसमें पाया गया था कि मुठभेड़ में मारे गए तीनों लोग स्थानीय ही हैं।
जिन्होंने उक्त मुठभेड़ को अंजाम दिया था, उनका दावा था कि तीनों विदेशी आतंकवादी थे, जिनके कब्जे से हथियार और गोला-बारूद बरामद किए गए थे।
सेना ने अब स्वीकार किया है कि मुठभेड़ में शामिल तीनों आरोपी व्यक्तियों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया था। उन्होंने सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफ्सफा) का फायदा उठाते हुए अपनी शक्तियों का गलत प्रयोग किया।
तीन मारे गए नागरिकों की पहचान अबरार अहमद (25), मोहम्मद इबरार (16) और इम्तियाज अहमद (20) के रूप में हुई है।
इन लोगों के पार्थिव शरीर को बाद में उनके परिजनों को सौंप दिया गया था।