19 सितंबर से 28 सितंबर तक गणेश चतुर्थी का उत्सव रहेगा। गुजरात और महाराष्ट्र में यह 10 दिवसीय त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो यह त्यौहार अब पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन हमेशा से यह त्योहार स्पेशली महाराष्ट्र क्षेत्र में ही बनाया गया हैं। यहां बप्पा के आगमन से पहले ही सारी तैयारियां कर ली जाती हैं। गणपति के आगमन से पहले ही पंडालों में खासा उत्साह देखने को मिलता हैं। इस त्यौहार को भगवान गणेश के जन्म के उत्सव में मनाया जाता हैं।
कब मनाया जाता है ये त्योहार?
भादो मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन गणपति बप्पा को घर लाया जाता है और अनंत चतुर्दशी के दिन वापस भेजा जाता है। वैसे भी भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। सफलता और समृद्धि उन्हीं की देन है। ऐसे में इनकी पूजा करने से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
शुभ कार्य से पहले करते हैं भगवान गणेश की पूजा
प्रचलित मान्यता के अनुसार इन दस दिनों तक भगवान गणेश पृथ्वी पर निवास करते हैं। इस समय वह न सिर्फ अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं, बल्कि उनकी परेशानियां भी दूर करते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान विघ्नहर्ता गणेश का जन्म भादो मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। किसी भी शुभ या नए कार्य को शुरू करने से पहले विघ्नहर्ता की पूजा करने की प्रथा है।
क्या है गणेश चतुर्थी के पीछे की वजह?
माना जाता है कि महाराष्ट्र क्षेत्र में गणेशोत्सव की प्रथा शिवाजी महाराज के शासनकाल के दौरान शुरू हुई थी। वैसे कहा जाता है कि इसकी शुरुआत पुणे में हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि जब इस क्षेत्र पर मुगलों का शासन था, उस दौरान छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी मां जीजाबाई ने सनातन धर्म को सुरक्षित करने के लिए इस गणेश महोत्सव की स्थापना की थी। इसके बाद अन्य पेशवाओं ने गणेशोत्सव मनाना शुरू किया। अंग्रेजों द्वारा सभी हिंदू त्योहार पर प्रतिबंध लगाने के बाद बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को फिर से शुरू किया।