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खिल उठे वो फूल जिनके खिलने से धरती पर होता है भगवान का आगमन, कवियों की रचना में भी है इनका ज़िक्र

Khushboo Sharma

शरद ऋतु जल्द ही आने वाली है, और मानसून का मौसम खत्म होने वाला है। जबकि मौसम विभाग भविष्य के मौसम परिवर्तनों की भविष्यवाणी करने के लिए विभिन्न प्रकार की मशीनों का उपयोग करता है, ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बिना किसी मशीन की मदद के ऐसा करना जारी रखते हैं। कांस के फूल अभी आपको चारों ओर पूरी तरह से खिले हुए नजर आ जाएंगे, जो दर्शाता है कि मानसून का मौसम खत्म होने वाला है और शरद ऋतु आ गई है।

कौन-से है ये कांस के फूल?

असल में, कांस फूल का खिलना मानसून के अंत और शरद ऋतु की शुरुआत का इशारा देता है। महान कवि कालिदास से लेकर आदि कवि तुलसीदास तक सभी ने इसके बारे में बात की है। इसके अलावा काजी नज़रुल इस्लाम और रवींद्र नाथ टैगोर की कविताओं में भी इस फूल का जिक्र बेहद अच्छी तरह से किया गया है।

देवताओं के आने का मिलता है इशारा

कांस के फूलों का खिलना पृथ्वी पर देवताओं के आगमन के साथ-साथ मौसम में बदलाव को भी दिखाता है। पश्चिम बंगाल में शारदीय नवरात्रि के दौरान कांस के फूलों का उपयोग किया जाता है और इसे बेहद शुभ भी माना जाता है। इलाके के ग्रामीणों का दावा है कि इस फूल का खिलना आसमान में सफेद बादल का प्रतीक है और इसके खिलने से यह स्पष्ट होता है कि हमारा पर्यावरण पृथ्वी पर देवताओं के आने का इंतजार कर रहा है।

कवि तुलसीदास ने भी की चर्चा

इस पुष्प के बारे में कवि तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस में लिखा है कि "फूले कास सकल महि छाई, जनु वर्षा कृत प्रकट बुढ़ाई"। इसके अलावा शरद ऋतु के आगमन से पहले कांस फूलों के बड़े रूप से खिलने से वर्षा ऋतु के अंत का आईडिया लगाया जा सकता है।

कालिदास से लेकर रवीन्द्र नाथ टैगोर तक ने की तुलना

जबकि महान कवि कालिई दुल्हन के परिधानदास ने अपनी कविता ऋतुश्रृंगार में लिखा है कि शरद ऋतु का वर्णन करने के लिए "फूले हुए कासों के निराले परिधान, साज नूपुर पहन मतवाले हंस गण के"। कालिदास ने कांस के फूलों की तुलना ना से की है। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने "शापमोचन" नाम की एक रचना में भी लिखा था जिसमें कांस के फूलों की सुंदरता का वर्णन किया गया है।