अफगानिस्तान में तालिबान के अत्याचार से बचने के लिए हजारों अन्य लोगों की तरह भाग कर आईं शोधकर्ता और कार्यकर्ता हुमैरा रियाजी ने वहां के खौफनाक और सदमे वाले माहौल को बयां करते हुए कहा, ''वे महिलाओं को इंसान नहीं समझते।''
रियाजी और अफगान सांसद शिनकाई कारोखैल जैसी महिलाओं के लिए पिछले महीने देश पर इस्लामिक मिलिशिया का कब्जा किसी भयावह सपने की वापसी की तरह था।रियाजी बताती हैं, ''महिलाओं को मौत के घाट उतारा जाता था और पिटाई की जाती थी (जब तालिबान पिछली बार सत्ता में आया था)। उन्होंने सभी अधिकार छीन लिए थे। वर्ष 2000 से महिलाओं ने अपने पैरों पर खड़े होने के लिए कड़ी मेहनत की जिसे उन्होंने दोबारा खो दिया है।''
इंडियन वुमेन्स प्रेस कोर की ओर से आयोजित कार्यक्रम में महिला पत्रकारों से संवाद करते हुए कारोखैल ने उस दर्द को बयां किया जिससे अफगान महिलाएं तालिबान के दोबारा कब्जे के बाद से गुजर रही हैं। उन्होंने कहा, ''बहुत ही भयावह स्थिति है।''
कारोखैल ने बताया कि तालिबान उन महिला कार्यकर्ताओं और नेत्रियों के घर गया जो कई देशों द्वारा वीजा नहीं दिए जाने की वजह से अफगानिस्तान छोड़ नहीं सकी। उन्हें धमकाया गया और अब उनके पास विकल्प है कि या तो देश छोड़ दें या चुप रहे।उन्होंने बताया, ''बड़ी संख्या में महिला कार्यकर्ता और नेत्री अफगानिस्तान में फंसी हैं और निरंतर अपना ठिकाना बदल रही हैं क्योंकि तालिबान उनके घरों की तलाशी ले रहे हैं। तालिबान ने उनके सुरक्षाकर्मियों से हथियार ले लिए हैं। उनके कार भी तालिबान के कब्जे में हैं।
उन्होंने कहा, ''इस तरह वे महिलाओं को डराना चाहते हैं ताकि वे देश छोड़ दें या बिना कोई आवाज उठाए चुप रहे।अफगान पत्रकार फातिमा फरामार्ज ने कहा कि महिलाओं को जानवर समझा जाता है और तालिबान ने फैसला किया है कि उन्हें उनसे मनोरंजन के साधन की तरह व्यवहार किया जाए।हाल की घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने दावा किया कि उनकी सहयोगी की महिलाओं का प्रदर्शन कवर करने के लिए बर्बरता से पिटाई की गई।