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वर्तमान में जातिवाद की भर्त्सना और वर्ण व्यवस्था पर चर्चा होनी चाहिए – डॉ. संजय पासवान

वसुधैव कुटुम्बकम परिषद के तत्त्वावधान में परिषद के गाँधी नगर पश्चिम बोरिंग केनाल रोड में जाति,धर्म एवं धर्मग्रंथों के विरोध को दूर कर सहज, सरस के एवं समरस समाज का वातावरण बनाने के उद्देश्य से ‘बौद्धिक संगोष्ठी’ का आयोजन किया गया।

पटना,(पंजाब केसरी): वसुधैव कुटुम्बकम परिषद के तत्त्वावधान में परिषद के गाँधी नगर पश्चिम बोरिंग केनाल रोड में जाति,धर्म एवं धर्मग्रंथों के विरोध को दूर कर सहज, सरस के एवं समरस समाज का वातावरण बनाने के उद्देश्य से ‘बौद्धिक संगोष्ठी’ का आयोजन किया गया।
परिषद के अध्यक्ष जे0एन0 त्रिवेदी ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा – वसुधैव कुटुम्बकम परिषद ने ब्राह्मणत्व का नारा दिया है ताकि ब्राह्मण सहित सभी को ब्राह्मणत्व प्राप्त करने का अधिकार है।जातिवाद छोड़ो वर्ण व्यवस्था जोड़ो। ये संकल्प है किंतु आज उससे भी जरूरी हो गया है वर्तमान संदर्भ में प्रासङ्गिक एवं व्यावहारिक भगवान मनु महाराज की मनुस्मृति में निहित विश्व समुदाय के लिए समान रूप से उपयोगी जीवन दर्शन की चेतना जगाना। उस जानकारी के अभाव में ही कोई ग्रंथ का अपमान करता है या ग्रंथ जलाता है।
     मुख्यअतिथि न्यायमूर्ति राजेन्द्र प्रसाद ने कहा नो योरसेल्फ अपने को जाने और अपने को सुधारें, बदलें।आत्मा स्वयं आपके भीतर स्फूर्त होगा। स्वयं को ब्रह्म मानकर दूसरों को भी ब्रह्म स्वरूप माने जाने। वसुधैव कुटुम्बकम के संस्थापक त्रिवेदी जी ब्रह्म स्वरूप हैं। सेवा महान आत्मा ही कर सकता है। इसलिए शूद्र कहाँ हीन है। समझने की जरूरत है अहं ब्रह्मास्मि।
शूद्र हीन नहीं ब्रह्मस्वरूप है समझने की जरूरत : न्यायमूर्ति राजेन्द्र प्रसाद
विशिष्ट अतिथि डॉ0 संजय पासवान ने कहा  जहाँ कहीं भी वाद, विवाद, संवाद है वहाँ ब्राह्मण है। ब्राह्मण, पिछड़ा, दलित, अंग्रेजों, मुगलों ने का विरोध झेलने के बावजूद उत्तरोत्तर प्रगति को प्राप्त करना ब्राह्मण की शक्ति का परिचय है। वर्तमान में जातिवाद की भर्त्सना और वर्ण व्यवस्था पर चर्चा होनी चाहिए। संस्थागत रूप से इस विचारधारा को चलाया जाय। बिना ज्ञान, धन, सेवा और व्यवसाय प्रगति के लिए जरूरी है। इसी तरह मानव समाज के कल्याण के लिए जीवन मे  चारों वर्ण का महत्व जानना होगा।
    बौद्धिक संगोष्ठी के आमंत्रित वक्ता  ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ0 राजनाथ झा ने कहा एक मानव में चारों वर्ण हैं। मुख ब्राह्मण, बाहु क्षत्रिय, उदर वैश्यऔर पैर शूद्र है। वैदिक काल से अद्यावधि अनेकों ऐसे उदाहरण
हैं जो नीच जाति में उत्पन्न होकर भी अपनी तपस्या से ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। तपस्या करने का अधिकार सभी को है। सदसद विवेक जिसमें है, जो गलत और सही का निरूपण करता  और तदनुसार कर्म करते है वे पंडित है। मनुस्मृति में छात्र, शिक्षक, नेता के बारे में जो कहा गया है उस पर चर्चा होनी चाहिए।
वैभव  तिवारी ने अपनी कविता में कहा- सम्हल जाओ वर्ना हर बात में तुमको बांटेंगे। 
परिषद की सीतामढी शाखा के अध्यक्ष सुशील कुमार झा ने बौद्धिक संगोष्ठी में अभिनंदन पत्र पढ़ा। हृदय नारायण झा ने स्वागत गान किया और संगोष्ठी की सार्थकता पर विचार व्यक्त किये। संगोष्ठी में मनेर, सासाराम सीतामढी शाखा के प्रतिनिधि सहित आरा, छपरा, बाँका आदि जिलों के परिषद प्रतिनिधियों ने भाग लिया।धन्यवाद ज्ञापन किया परिषद के उपाध्यक्ष सीए राजनाथ झा ने। आयोजन में समर्पित भागीदारी की उपाध्यक्ष वशिष्ठ नारायण चौबे, पण्डित जी पांडेय सहित परिषद के सक्रिय सदस्यों ने। मंच संचालन किया संतोष तिवारी ने।

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