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बिहार : विपक्ष की रणनीति में एकरूपता की कमी से मिल सकती है NDA को बढ़त

बिहार में लोकसभा चुनावों के दौरान मिली हार से अभी तक नहीं उबर पाया विपक्ष ऐसा लगता है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति को लेकर भी कई विचारों में उलझ गया है।

बिहार में लोकसभा चुनावों के दौरान मिली हार से अभी तक नहीं उबर पाया विपक्ष ऐसा लगता है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति को लेकर भी कई विचारों में उलझ गया है। विपक्ष को अगले साल मजबूत राजग (एनडीए) का सामना करना है। 
वरिष्ठ राजद (आरजेडी) नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने शुक्रवार को एक बार फिर आह्वान किया कि सभी क्षेत्रीय दलों का महागठबंधन में विलय होना चाहिए। हालांकि इस विचार से उनकी अपनी पार्टी में ही बहुत कम लोग सहमत हैं। 
अपेक्षाकृत छोटे दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा, “विलय एक अच्छा विचार है। अगर राजद और दूसरे घटक हम में विलय के लिए तैयार होते हैं, तो हम स्वागत करेंगे।” 
उल्लेखनीय है कि ‘हम’ के संस्थापक अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कह चुके हैं कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो वह महागठबंधन छोड़ देंगे। 
मांझी की मांग है कि महागठबंधन चुनाव जीतता है तो बनने वाली सरकार में मुख्यमंत्री के अलावा दो उप मुख्यमंत्री बनाए जाने चाहिए और ये पद अति पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक वर्ग से एक-एक उम्मीदवारों को दिए जाएं। 
अगर मांझी के फार्मूले को मान लिया जाए तो लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव या उनके परिवार के किसी भी अन्य सदस्य के लिए सरकार का नेतृत्व करने के रास्ते बंद हो जाएंगे। लालू प्रसाद का परिवार बिहार की एक शक्तिशाली पिछड़ी जाति से है जिसका पिछले तीन दशक से बिहार की राजनीति पर वर्चस्व रहा है। 
आरएलएसपी नेता और राजग के पुराने साथी उपेंद्र कुशवाहा ने एक दूसरा विचार सामने रखा कि महागठबंधन का दायरा बढ़ाकर इसमें वाम दलों को भी शामिल करना चाहिए। राज्य में कांग्रेस के प्रभारी शक्तिसिंह गोहिल ने सैद्धान्तिक रूप से कुशवाहा के प्रस्ताव से सहमति जताई है। 
वाम दलों, जिन्हें राज्य में अब गुजरे जमाने की ताकत माना जाता है, उन्होंने इस प्रस्ताव में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई है। कांग्रेस विधायक प्रेम चंद्र मिश्रा ने कहा है कि महागठबंधन में अलग-अलग तरह की बातों से सिर्फ एनडीए को ही फायदा होगा।

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