पटना, (पंजाब केसरी) : केलवा जो फरेला घवद से सरीखे छठ गीतों से बिहार में जन-जन की आस्था से जुड़े सूर्योपासना का महान पर्व छठ की छंटा चहुंओर छा गई। नहाय खाय से शुरू होने वाला 4 दिवसीय छठ पर्व शनिवार के सुबह अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य प्रदान कर पर्व की समाप्ति होगी। पर्व के दूसरे दिन व्रतियों ने स्नान-ध्यान के बाद पूरी निष्ठा से गुड़, दूध व चावल से बनी खीर एवं शुद्ध गेहू के आटा से बनी रोटी का प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का निराहार- निर्जला छठ व्रत का आरंभ किया।
शनिवार को व्रति सांय में नदी-तालाब घाटों पर स्नान कर डूबते सूर्य को पहला अर्ध्य दिया वहीं शनिवार को प्रातः उगते सूर्य को अर्ध्य देकर व्रत को समाप्त किया गया। बता दें कि मनोकामना पूर्ण को लेकर लोगों में छठ व्रत के प्रति आस्था बनी हुई है। घाट तक पहुंचने में छठ व्रतियों को परेशानी ना होने को लेकर समाजसेवियों व प्रशासन के द्वारा घाट की सफाई व सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया। खतरनाक घाटों के साथ अधिक पानी वाले स्थानों पर लाल कपड़ा लगाकर प्रतिबंधित किया गया है।
हिंदू धर्म में सूर्य को साक्षात् भगवान माना गया है क्योंकि वे रोज दर्शन देते हैं और उन्हीं के प्रकाश से जीवनदायिनी शक्ति प्राप्त होती है। लोक परंपरा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्टी की पहली पूजा को सूर्य ने किया था। व्रती पूजा छठी मईया की करते हैं पर अर्ध्य सूर्यदेव को देते हैं। ब्रह्मा के मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण वे छठी मईया कही जाती हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि की पूजा को छठी मईया की पूजा कहा जाता है वहीं सप्तमी तिथि को सूर्य की जन्म तिथि है।