पटना : बिहार को विशेष राज्य के दर्जा को लेकर एक बार पुन: राजनीति गरमा गई है। राजद जहां आज विशेष राज्य का मुद्दा उठाया वहीं कांग्रेस ने 15 दिनों पूर्व विशेष राज्य की मांग को उठाकर राजनीती में सुगबुगाहट पैदा कर दिया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला गरीब राज्य है। 15 वर्षों की एनडीए सरकार की विफलताओं के चलते नीति आयोग के सभी महत्वपूर्ण सतत विकास सूचकांकों में सबसे निचले पायदान पर रहने और अब इस महामारी के संकट के कारण बिहार को वैध रूप से विशेष राज्य का दर्जा, एक विशेष समावेशी वित्तीय और चिकित्सा पैकेज की आवश्यकता है।
यादव ने कहा कि बिहार के संसाधन सीमित है। बीजेपी के नेतृत्व में 15 साल से चली आ रही नीतीश सरकार ने प्रदेश के स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में विविधता लाने, इंडस्ट्री लगाने, रोजगार सृजन करने और आधारभूत ढांचे को बदलते आधुनिक समय की जरूरतों के हिसाब से बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया। कोरोना महामारी से उत्पन्न संकट करोड़ों गरीबों और निम्न आय समूहों के लिए अकल्पनीय असहनीय और उनके अस्तित्व के लिए पीड़ादायक होगा। हमारी पुरजोर मांग है कि इस संकट की घड़ी में ड़बल इंजन सरकार बिहार को अविलंब विशेष राज्य का दर्जा दें। मुझे उम्मीद है डबल इंजन सरकार और मुख्यमंत्री कम से कम जनादेश अपमान की एवज में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की हमारी मांग पर केंद्र सरकार को राजी करेंगे।
वहीं, विगत 15 दिन पहले युवा कांग्रेस की बिहार इकाई के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार ने कहा था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा अगर केंद्र सरकार नहीं दे रही है तो कम से कम अब इन प्रवासी मजदूरों के रोजगार के साधन उपलब्ध हों, इसके लिए विशेष पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि बिहार की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है। ऐसे में बिहार सरकार के लिए रोजगार सृजन एक बड़ी समस्या है। ललन ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक इस कोरोना बंदी के दौरान करीब 20 लाख मजदूर बिहार वापस आने वाले हैं। ऐसे में इनके सामने ना केवल रोजगार की समस्या है बल्कि वे अकुशल मजदूरों की श्रेणी में आते हैं। उन्होंने इन मजदूरों को स्वरोजगार के साधन उपलब्ध कराने के लिए इच्छुक लोगों को प्रशिक्षण दिए जाने की भी मांग की है।