पटना : जातिगत जनगणना के प्रति मुख्यमंत्री की उदारता किस सकारात्मक प्रतिफल की संभावनाओं को लेकर है? सभी राजनीतिक दलों को मिलाकर 50% आबादी के मत से प्राप्त गठबन्धन की सत्ता और विपक्ष के राजनीतिक दलों के साथ जातिगत जनगणना के समर्थन में मिलने, विमर्श करने और निर्णय लेने का औचित्य क्या है? शेष 50% आबादी के प्रतिनिधित्व के लिए उत्तरदायी राज्य के प्रबुध्द वर्ग, विद्वानों, विचारकों, सामाजिक चिंतकों, गैर राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ इस विषय पर वार्ता, विचार विमर्श का औचित्य क्यों नहीं मानते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ?
वसुधैव कुटुम्बकम परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेएन त्रिवेदी ने जातिगत जनगणना के समर्थक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं उनके साथ अन्य दलों के समर्थकों के लिए सवाल उठाते हुए कहा कि जातीय जनगणना क्यों होनी चाहिए और क्या होंगी इसकी संभावनाएं राज्य की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक , सांस्कृतिक और राजनीतिक विकास के हित में ?
इस विषय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपनी विचारधारा सार्वजनिक करनी चाहिए। ताकि जनता भी राज्यहित में जातीय जनगणना संबंधी मुख्यमंत्री के विचारों को जान सकें।श्री त्रिवेदी ने कहा कि मुख्यमंत्री के साथ जातीय जनगणना के लिए जिन 11 दलों का प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिले, उन सबके विचार भी सार्वजनिक होनी चाहिए, ताकि जनता को मालूम हो कि उनके हित में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के विचार कितने उदार हैं?
श्री त्रिवेदी ने कहा चूँकि इनमें अधिकांश समाजवादी विचारधारा वाली राजनीति से संबंधित हैं, जिसके प्रवर्तक डॉ राम मनोहर लोहिया जी का नारा रहा है ‘जाति तोड़ो जमात जोड़ो’, ऐसे में जातिगत जनगणना के पक्ष में जो राजनीति हो रही है उसका निहितार्थ क्या हो सकता है ?
परिषद के प्रधान महासचिव एवं प्रवक्ता संतोष कुमार तिवारी, उपाध्यक्ष पंडितजी पांडेय, वरीय अधिवक्ता उमाशंकर प्रसाद ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के विचारों का समर्थन किया और संयुक्त स्वर में कहा कि नेता और जनता के बीच संवादहीनता समाप्त होना जरूरी है।