कास्ट: अभिषेक बच्चन, निम्रत कौर, यामी गौतम, मनु ऋषि, अरुण कुशवाह, दानिश हुसैन आदि
निर्देशक: तुषार जलोटा
रेटिंग स्टार : 3
कहां रिलीज़ होगी =: नेटफ्लिक्स पर
रिलीज़ डेट: 7 अप्रैल 2022
मुख्य बातें
*फिल्म दसवीं सात अप्रैल को रिलीज होगी।
*फिल्म में अभिषेक बच्चन लीड रोल में हैं।
*यामी गौतम एक सख्त ऑफिसर के रोल में हैं।
*निम्रत कौर अभिषेक बच्चन की पत्नी रहती जो बाद में सीएम बन जाती हैं।
“मेरे बेटे , बेटे होने से मेरे उत्तराधिकारी नहीं होंगे , जो मेरे उत्तराधिकारी होंगे , वो मेरे बेटे होंगे।’ दसवीं का ट्रेलर रिलीज होने के बाद अमिताभ बच्चन ने अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की कविता की इन पंक्तियों के साथ अभिषेक बच्चन को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। फिल्म रिलीज के बाद अब अभिषेक बच्चन के फैंस को इंतजार कर रहे हैं कि वह सही मायनों में अपने पिता की इन बातों को सच साबित करते हैं या नहीं। दसवीं सात अप्रैल को रिलीज हो रही है। ऐसे में फिल्म देखने से पहले पढ़ लें ये रिव्यू।
किरदारों की पूरी लिस्ट
दसवीं में अभिषेक बच्चन एक भ्रष्ट सीएम गंगाराम चौधरी के किरदार में है। वहीं, यामी गौतम पुलिस ऑफिसर और निम्रत कौर अभिषेक बच्चन की वाइफ का किरदार निभा रही हैं। डायरेक्टर तुषार जलोटा की इस पहली फिल्म में काफी सारे एलिमेंट देखने को मिलेंगे। हालांकि, इस फिल्म में कुछ कमी इसे 10 में से 10 नंबर लाने से रोकती है।
ऐसी हैं फिल्म की कहानी
‘दसवीं’ की कहानी एक ऐसे अगूंठा छाप चौधरी गंगाराम (अभिषेक बच्चन) की, जो हरित प्रदेश का मुख्यमंत्री है, लेकिन दस्तखत करने की जगह पर पांच छोटे-छोटे विराम खींचकर एक फुलस्टॉप उनके ऊपर लगा देता है। बावजूद इसके उसे जीतना आता है, जाति की राजनीति आती है, सारे जोड़-तोड़ और हथकंडे आते हैं। लेकिन एक शिक्षक भर्ती घोटाले में चौधरी गंगाराम यानी अभिषेक बच्चन का नाम आते ही उसको जेल जाना पड़ता है और उसकी जगह उसकी पत्नी विमला चौधरी (निम्रत कौर) को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है।
जेल में हुई फिल्म की अधिकांश पार्ट की शूट
वही घोटाले के मामले में जब गंगाराम को जेल की हवा खानी पड़ती हैं। तब जेल में उन्हें दसवीं की परीक्षा पास करने का मन बनता है, ताकि जेल के कामों से बचा जा सके और भावुक होकर बोल देता है कि ‘दसवीं पास नहीं कर पाया तो दोबारा सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा’. लेकिन उसकी पत्नी जो गंगाराम के जेल जाने के बाद सीएम बन जाती है वो पूरी कोशिश करती है कि वो दसवीं पास ना कर पाए। इधर गंगाराम की जेल में कुछ कैदी उसकी पढ़ाई में मदद करते हैं, उसे पढ़ाते हैं ताकि वो दसवीं पास कर ले। आगे की कहानी इसी पर है कि क्या वो दसवीं पास कर पाएगा? क्या वो जेल से बाहर आ पाएगा? क्या वो पत्नी से बदला लेगा? क्या जेल अधीक्षक को सबक सिखा पाएगा? क्या वो फिर से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बन पाएगा?
फिल्म में कॉमेडी का तड़का
वही डायरेक्टर ने तमाम सीन्स ऐसे रचे हैं, जैसे घंटी और जेलर जैसे तमाम किरदार ऐसे जोड़े हैं, जिससे फिल्म का कॉमेडी फ्लेवर बना रहे, हालांकि कहीं कहीं ज्यादा सीरियस लगने लगती है। तमाम चुटीले डायलॉग्स आपको मूवी देखते देखते हसाएंगे भी. हरियाणवी में ये और भी अच्छे लगेंगे, लेकिन वही कई जगह ये मूवी या सींस बनावटी भी लग सकते हैं। और ऐसा लग सकता की जैसा आपको जबरदस्ती हसाया जा रहा हैं।
अभिषेक-निम्रत की शानदार एक्टिंग
वही बात करे एक्टिंग की तो अभिषेक तो इस मूवी में कमाल हैं ही, निम्रत कौर ने भी कम मेहनत नहीं की है, यामी गौतम के हिस्से में भी दमदार रोल आया है। लेकिन यामी की एक्टिंग थोड़ी और अच्छी हो सकती थी। दोनों कलाकारों की तुलना में। वही मनु ऋषि हमेशा की तरह अपने छोटे रोल मे भी प्रभाव छोड़ जाते हैं, अरुण कुशवाह को आपने छोटे पर्दे पर काफी कॉमेडी-मिमिक्री करते देखा होगा, और अब बड़े पर्दे पर भी अपना असर बखूबी निभाया हैं। वही सचिन-जिगर का म्यूजिक मूवी की जरूरत के मुताबिक औसत रहा है, हालांकि मूवी की एडिटिंग कमाल की है। और सीन्स काफी अचे फिमाएं गए हैं।
कहां फ्लॉप हुई कहानी?
फिल्म बनाने के लिए तुषार जलोटा ने विषय तो अच्छा चुना पर इसे थोड़ा इंटरेस्टिंग बनाने के बजाय उन्होंने कहानी को शुरुआत से ही बड़ा फ्लैट रखा. सिर्फ सब्जेक्ट के भरोसे कहानी को जबरदस्ती खींचने की कोशिश नजर आई। वही फिल्म देखने समय ऐसा अभी महसूस होगा की फिल्म को जबरदस्ती खींचा गया हैं। जैसी की फिल्म में कुछ सीन आपको ऐसे देखने को मिलेंगे जैसे आपको अभिषेक बच्चन को लाला लाजपत राय को लाठियों से बचाकर ले जाते, डांडी मार्च में गांधीजी के साथ भाग लेते, अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद को बचाकर निकालने की कोशिश करते, नेताजी बोस का ड्राइवर बनकर उनको वेश बदलकर घर से निकालते भी देखेंगे। तो ये सब मूवी में आपको थोड़ा बोर कर सकता हैं . वही मूवी के अंत में गंगाराम चौधरी अच्छे अंको से पास भी हो जाता हैं और दुबारा से सीएम भी बन जाता हैं। तो मूवी की क्लाइमेक्स थोड़ा और इंट्रेस्टिंग हो सकती थी। लेकिन अफ़सोस वो नहीं हो पाई
कति जहर है जहर है जहर है। इस जाट नेता गंगा राम चौधरी के ये जो बोल हैं वो हरियाणवी में भले ही पॉजिटिव मतलब रखते हों, पर फिल्म को नंबर देने के लिहाज से तो दिल में जहर उतर आता है। वही फिल्म में तो अभिषेक दसवीं में अच्छे नम्बर से पास हो जाते हैं, लेकिन दर्शको के नजर में ये फिल्म बुरी तरह से फ़ैल हो सकती है। वही अगर आप अभिषेक बच्चन फैन हैं तो ये मूवी जरूर देखें, अगर नहीं हैं तो छोड़ भी सकते हैं। लेकिन पारिवारिक माहौल में देखने के लिए एक अच्छा टाइमपास है। और थोड़ा फन वाली मूवी आप देखने का सोच रहे हैं तो आप ये मूवी देखने का सोच सकते हैं। वेल अंत में इतना ही कहूँगी की फिल्म ONE TIME WATCH हैं। तो आप देख भी सकते हैं नहीं भी देख सकते हैं।