बालीवुड की दिलकश व खूबसूरत अदाकारा डायना पेंटी। एक ऐसी अदाकारा, जिन्होंने चुनिंदा फिल्मों में ही काम किया। कॉकटेल और हैप्पी भाग जाएगी में दर्शकों ने उनके अभिनय को पसंद किया और अब जल्द फिल्म लखनऊ सेंट्रल में नजर आएंगी। जॉन अब्राहम के साथ भी एक फिल्म कर रही हैं, जिसका नाम है परमाणु-द स्टोरी ऑफ पोखरन। लखनऊ सेंट्रल के सिलसिले में उनसे बात करने का मौका मिला।
पेश हैं कुछ खास अंश :
आलोचना को किस रूप में लेती हैं?
मैं रचनात्मक आलोचनाओं को सुनने के लिए पूरी तरह से तैयार रहती हूं। अगर किसी की आलोचना बेहद रचनात्मक है, तो सुनने में कोई बुराई नहीं।
लखनऊ सेंट्रल में आपका किरदार क्या है?
मैं फिल्म में एनजीओ वर्कर का कैरेक्टर प्ले कर रही हूं, जो कैदियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ती है। जेल में कैदी किस दशा में रहते हैं, उन्हें जो मूलभूत सुविधाएं मिलनी चाहिएं, वो कई बार नहीं मिल पाती। उनके हकों के लिए मुझे जूझना पड़ता है। उनके लिए जेल में ट्रेनिंग दिलाने के लिए मैं काम करती हूं, जिन्हें कैदी सीखते हैं। कुल मिलाकर मेरी भूमिका एक सोशल वर्कर की है।
क्या आपको लगता है कि जेल में कैदियों को बुरी दशा में रखा जाता है?
देश में कई जेल ऐसी हैं, जहां कैदियों के साथ दुव्र्यहार होता है। आप खुद सोचिए, वे लोग भी तो इंसान हैं। अगर उनसे कुछ गलत हो गया है, तो कैदी के रूप में उन्हें सजा मिल रही है, पर सही तरीके से जीना सभी का मौलिक अधिकार है, जो कैदियों को भी मिला है। हालांकि कुछ जेल ऐसी हैं जहां कैदियों को सुधरने के लिए ईमानदारी से काम किया जाता है, पर ऐसी जेल अपवाद स्वरूप हैं।
आप उन कैदियों के हक की लड़ाई लड़ती हैं जिन्होंने हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य अपराध किए होते हैं। उनके प्रति संवेदना क्यों?
पहले तो मैं आपको क्लीयर कर दूं कि जेल मेें बंद नब्बे प्रतिशत कैदी ऐसे होते हैं, जिन्होंने एक बार अपराध किया है। ऐसे अपराध उनसे परिस्थितिवश गलती से हो जाते हैं और ऐसे कैदियों को सही रास्ते पर लाना भी हमारा कर्तव्य है। वे जब जेल से बाहर आएंगे, तो क्या करेंगे, इसलिए उन्हें जेल में ही समय रहते कुछ न कुछ सिखा देना बहुत जरूरी है ताकि बाहर आने पर मुसीबत न झेल पाएं।
आपने कॉकटेल, हैप्पी भाग जाएगी जैसी फिल्में की हैं जिनमें आपके किरदार को पसंद किया गया। इसके बावजूद फिल्मों के मामले में आपकी रफ्तार इतनी धीमी क्यों है?
मैं जल्दबाजी में कोई फिल्म नहीं करना चाहती। एक ही तरह के कैरेक्टर दर्शकों को बोर कर देते हैं। मैं हर तरह के किरदार निभाना चाहती हूं ताकि वैरायटी मिलती रहे। यही कारण है कि मैं ज्यादा फिल्में नहीं कर पाई।
‘परमाणु द स्टोरी ऑफ पोखरण’ के बारे में कुछ बताएं?
यह सत्य घटना पर आधारित कहानी है। फिल्म में मैं उस मिशन का हिस्सा हूं। इसमें मेरा एक्शन अवतार भी देखने को मिलेगा। आजकल मैं किक बॉक्सिंग की प्रैक्टिस भी कर रही हूं। आगे मेरी इच्छा है कि मैं एक बायोपिक करूं, जो किसी स्पोट्र्स पर्सन या फिर म्यूजिशियन की जिंदगी पर आधारित हो और हां कल्पना चावला पर बायोपिक बनती है तो उसे मैं करना चाहूंगी, क्योंकि बचपन से ही मैं एस्ट्रोनॉट बनना चाहती थी।