माल एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद द्वारा गठित मंत्रियों के समूह ने केरल में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार को जीएसटी व्यवस्था के तहत एक प्रतिशत ‘आपदा उपकर’ लगाने की अनुमति देने के प्रस्ताव पर रविवार को अपनी सहमति प्रदान की।
बाढ़ से तबाह इस राज्य को यह उपकर दो साल के लिए लगाने की छूट दी जाएगी। मंत्रियों के समूह के अध्यक्ष एवं बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इस विषय पर समूह की बैठक के बाद संवाददाताओं को बताया कि केरल में किन वस्तुओं एवं सेवाओं पर एक प्रतिशत का यह उपकर लगेगा, इसका फैसला राज्य सरकार ही करेगी।
उन्होंने कहा कि यदि कोई अन्य राज्य सरकार आपदा उपकर लगाना चाहती है तो उसे जीएसटी परिषद की मंजूरी लेनी होगी। यह फैसला केरल सरकार के अनुरोध पर किया गया है।
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बिहार के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने संवाददाताओं से कहा, “केरल सरकार ने जीएसटी परिषद से पुनर्वास कार्य के लिए धन जुटाने हेतु उपकर लगाने का आग्रह किया था। मंत्रियों के समूह ने परिषद से सिफारिश की है कि केरल को दो साल के लिए एक प्रतिशत की दर से उपकर लगाने की अनुमति दी जाए।”
उन्होंने कहा कि इसके अलावा जीओएम ने यह भी सिफारिश की है कि प्राकृतिक आपदा की स्थिति में राहत और बचाव के लिए धन जुटाने के वास्ते वित्तीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंध कानून के तहत ऋण की सीमा बढ़ाने का फैसला केंद्र और राज्य सरकार मिलकर करें। उल्लेखनीय है कि माल एवं सेवा कर अधिनियम के तहत किसी प्राकृतिक आपदा या दुर्घटना के समय अतिरिक्त संसाधन जुटाने हेतु विनिर्दिष्ट समय के लिए विशेष कर लगाने का प्रावधान है।
जीएसटी परिषद द्वारा गठित मंत्रियों के एक अन्य समूह की भी रविवार को राजधानी में बैठक हुई। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल की अध्यक्षता में इस समूह ने सूक्ष्म, लघु एवं मंझोले उद्योगों (एमएसएमई) को जीएसटी के तहत राहत देने के लिए कारोबार की मौजूदा न्यूनतम सीमा को 20 लाख रुपये सालाना से ऊपर करने पर चर्चा की।
सुशील ने कहा कि इस समूह में इस बात पर एक राय थी कि जो एमएसएमई माल की आपूर्ति करती हैं, उनके लिए कारोबार की सीमा बढ़ायी जानी चाहिए लेकिन सभी राज्यों की इस मुद्दे पर अभी एक राय नहीं बन पायी है, इसलिए इसे जीएसटी परिषद पर छोड़ दिया गया है। दिल्ली ने कारोबार की सीमा को बढ़ाकर 40 लाख रुपये तक करने का सुझाव दिया तो बिहार के मुताबिक इसे 50 लाख किया जाना चाहिए।
एक अन्य सुझाव था कि एकमुश्त कर योजना के तहत सालाना 50-60 लाख रुपये तक का कारोबार करने वाली एमएसएमई पर पांच हजार रुपये और 60-75 लाख रुपये तक का कारोबार करने वालों पर 10,000-15,000 रुपये तक की जीएसटी लगायी जानी चाहिए।
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सुशील ने कहा, “जीएसटी लागू किये जाने से पहले उत्पाद शुल्क व्यवस्था में डेढ़ करोड़ रुपये वार्षिक तक के कारोबार करने वालों को कर के दायरे से बाहर रखा जाता था। इसलिए मंत्रियों के समूह को यह लगा कि जीएसटी के तहत एमएसएमई को कुछ राहत जरूर मिलनी चाहिए।”
जीएसटी परिषद की अगली बैठक 10 जनवरी को होनी है, जिसमें इन दोनों समूहों की सिफारिशों पर चर्चा होगी।
शुक्ला के नेतृत्व वाले मंत्रियों के समूह ने यह भी सुझाव दिया है कि सालाना डेढ़ करोड़ रुपये तक का कारोबार करने वाली इकाइयों को एकमुश्त कर योजना की सुविधा दी जाए। अभी यह सीमा एक करोड़ रुपये की है।
समूह ने कहा है कि एकमुश्त (कंपोजिशन) योजना के तहत आने वाली इकाइयों को साल में केवल एक बार विवरण प्रस्तुत करने की छूट हो, भले ही वे नियमित रूप से कर का भुगतान करें। वर्तमान व्यवस्था में ऐसी इकाइयों को तिमाही आधार पर कर जमा करना और विवरण प्रस्तुत करना होता है।
समिति ने सालाना 50 लाख रुपये तक का कारोबार करने वाली सेवा प्रदाता इकाइयों को कंपोजिशन योजना में लाने की सिफारिश भी की है। उन पर पांच प्रतिशत की दर से कर लगाने का सुझाव दिया है।
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इस मंत्री समूह ने यह भी सिफारिश की है कि वार्षिक डेढ़ करोड़ रुपये तक का कारोबार करने वाली इकाइयों को जीएसटीएन की ओर से लेखा और बिलिंग सॉफ्टवेयर नि:शुल्क उपलब्ध कराया जाए।
शुक्ल की अध्यक्षता वाली समिति का गठन अगस्त में किया गया था। इसमें बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, असम के वित्त मंत्री हिमंत विश्व शर्मा, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजैक और पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल शामिल हैं।
प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत और पुनर्वास आदि कार्यों के लिए जीएसटी प्रणाली के तहत ‘‘आपदा उपकर’’ का प्रावधान किए जाने पर विचार के लिए गत अक्टूबर में गठित सुशील मोदी के नेतृत्व वाले मंत्री समूह में असम, केरल और पंजाब के वित्त मंत्रियों के अलावा ओडिशा के वित्त मंत्री शशिभूषण बेहरा, महाराष्ट्र के वित्त मंत्री सुधीर मुंगंतिवार और उत्तराखंड के वित्त मंत्री प्रकाश पंत भी रखे गए हैं।