नई दिल्ली : सरकार तेल कंपनियों में मौजूदा क्रॉस-होल्डिंग की संरचना को समाप्त कर सकती है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के संचालन को संगठित करने और उनके निजीकरण की योजना पर विचार किया जा रहा है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के अधीनस्थ (पीएसयू) सभी तेल कंपनियों को दूसरी सरकारी कंपनियों के इक्विटी शेयर में किए गए निवेश से बाहर आने को कहा जाएगा।
यह काम बाजार की दशाओं के आधार पर चरणबद्ध ढंग से होगा ताकि शेयर के मूल्य को अधिकतम किया जा सके। सार्वजनिक क्षेत्र के तहत आने वाली तेल कंपनियों में क्रॉस-होल्डिंग की संरचना 1990 के दशक में बनाई गई थी क्योंकि फंड जुटाने के लिए सरकार ने ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल), ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी), गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) में अपनी हिस्सेदारी बेची थी।
इसके फलस्वरूप ओएनजीसी में जहां गेल और आईओसी हिस्सेदारी क्रमश: 7.84 फीसदी और 2.45 फीसदी है वहां आईओसी में ओएनजीसी और ओआईएल की हिस्सेदारी क्रमश: क्रमश: 14.20 फीसदी और 5.16 फीसदी है। वहीं, गेल इंडिया में आईओसी और ओएनजीसी की हिस्सेदारी क्रमश: 2.44 फीसदी और 4.87 फीसदी है। ओआईएल में बीपीसीएल की हिस्सेदारी 2.42 फीसदी, एचपीसीएल की 2.47 फीसदी और आईओसी की 4.93 फीसदी है।
अगर सरकार पीएसयू तेल कंपनियों के क्रॉस-होल्डिंग शेयर की बिक्री करके अपनी हिस्सेदारी का विनिवेश करती है तो उससे एक अनुमान के तौर पर 40,000-50,000 करोड़ रुपये की राशि जुटाई जा सकती है। एक सूत्र ने बताया, सरकार तेल क्षेत्र में क्रॉस-होल्डिंग को समाप्त करना चाहती है क्योंकि सरकार की सकेमन व निजीकरण योजना का मकसद दो से तीन एकीकृत बड़ी कंपनियां बनाना है।
इससे ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां क्रॉस-होल्डिंग को प्रतिस्पर्धारोधी माना जाएगा और इससे हितों का टकराव होगा। विश्लेषक भी मानते हैं कि भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) में लिवाली करने को सोच रहे रणनीतिक निवेशकों के लिए सूचीबद्ध निवेश की बिक्री के मायने हैं क्योंकि इससे भविष्य में सरकार द्वारा किसी प्रकार के हस्तक्षेप का खतरा कम हो जाएगा।