मुंबई : आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने शनिवार को राजकोषीय घाटा नियंत्रित रखने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने फिर कहा कि दो हजार के नोट की छपाई बंद करने के बारे में कोई निर्णय नहीं किया गया है। गर्ग ने गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र पर यहां सीआईआई के एक कार्यक्रम में कहा कि सरकार राजकोषीय घाटा को दायरे में रखने के लिये प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष में सरकार राजकोषीय घाटा को बढ़ने नहीं देगी।
उन्होंने दो हजार रुपये के नोट की छपाई बंद होने की बात नकारते हुए कहा कि सरकार ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है। उन्होंने कहा कि दो हजार रुपये के नोट की छपाई बंद करने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है। ये नोट परिचालन में हैं। आज के समय में कुल करीब सात हजार करोड़ रुपये मूल्य के दो हजार के नोट परिचालन में हैं। ऐसी खबरें थीं कि सरकार ने रिजर्व बैंक को दो हजार रुपये के नोट की छपाई कम करने के लिये कहा है।
गैर बैंकिंग क्षेत्र के ठोस विनियमन की आवश्यकता : आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) क्षेत्र में जारी संकट के लिये इस क्षेत्र के कारोबार के बारे में ताजा आंकड़ों के अभाव को जिम्मेदार बताया है। उन्होंने क्षेत्र के सुव्यवस्थित विकास के लिये इसकी नियमन व्यवस्था मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया है। गर्ग ने शनिवार को कहा कि सरकार एनबीएफसी क्षेत्र की कंपनियों के कारोबार के बारे में पर्याप्त सूचना की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए रिजर्व बैंक के साथ मिल कर एक प्रणाली स्थापित करने का प्रयास कर रही है।
आईएलएंडएफएस संकट पिछले साल अगस्त में सामने आया था। तब से पूरा एनबीएफसी क्षेत्र कर्ज के संकट से गुजर रहा है। आईएलएंडएफएस के कर्ज भुगतान में चुक करने के बाद से इस क्षेत्र पर निवेशकों के विश्वास को झटका लगा और डीएचएफएल और इंडियाबुल्स जैसे एनबीएफसी के सामने भी धन की कमी पैदा हो गयी। इनके शेयरों में इसके बाद भारी गिरावट देखने को मिली है। गर्ग ने एनबीएफसी क्षेत्र के बारे में सीआईआई के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि एनबीएफसी के विकास के लिये अच्छा नियमन जरूरी है।
वृद्धि को नुकसान पहुंचाने वाला कोई भी नियमन अच्छा नियमन नहीं है। उन्होंने कहा कि अभी ऐसे नियमन की जरूरत है जो एनबीएफसी तथा निवेशकों की जरूरतों को पूरा करे तथा कुल मिलाकर वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करे। गर्ग ने कहा कि आईएलएंडएफएस संकट से पता चलता है कि सिर्फ नियमन ही नहीं बल्कि आंकड़ों का संग्रह, सूचना देने तथा नियामक या सरकार के साथ संवाद के स्तर कमियों को भी दूर करने की जरूरत है।