रायपुर : छत्तीसगढ़ में सत्ता की राह पाने राजनीतिक दलों में उठापटक नज़र आ रही है। एक-एक वोटों को लेकर रणनीतिकारों में उधेड़बुन का दौर चल रहा है। बीते चुनाव में मतों के प्रतिशत की तुलना करें तो भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर काफी नजदी का मामला साबित हुआ था। सत्ताधारी दल भाजपा से कांग्रेस महज 1 फीसदी से भी कम मतों से दूर रही थी। यही समीकरण सताधारी दल भाजपा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। भाजपा के रणनीितकारों ने वोट शेयर बढ़ाने के लिए ताकत झोंकी हुई है। इसलिए ही भाजपा हाईकमान ने राज्य संगठन और सरकार को मिशन 65 का लक्ष्य दिया है।
भाजपा अब इसी दिशाा में रणनीतियों को अमलीजामा पहना रही है। राज्य में बीते तीनों विधानसभा चुनाव में वोट शेयर पांच फीसदी से अधिक नहीं रह पाया हे। भाजपा और कांग्रेस के बीच अंतर भी काफी कम रहा इसलिए भी रणनीितकार और राजनीतिक प्रेक्षक भी सीधे तौर पर कोई दावे नहीं कर पाते। इसके बावजूद चुनावी मिशन में दोनों ही दलों ने इस बार पूरी ताकत झोंकी हुई है। माना जा रहा है कि रणनीतिकारों की उधेड़बुन में राजनीतिक दल चुनाव में निश्चिंत रहने की जुगत में हैं।
वहीं वजह है कि वोट शेयर बढ़ाकर पटखनी देने पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए सीधे तौर पर दलित और आदिवासी सीटों पर फोकस होगा। भाजपा पूर्व के चुनाव में भी इसी दिशा में काम करती रही है। वहीं शुरू के दो चुनाव में आदिवासी बेल्ट में परचम लहराया था। वहीं कांग्रेस को दलित आरक्षित सीटों के साथ मैदानी सीटों में आंशिक सफलता मिली थी। बीते चुनाव में समीकरण बदलने के साथ आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस का परचम लहराया। वहीं भाजपा ने इसकी भरपाई दलित आरक्षित सीटों के साथ मैदानी सीटों से कर ली थी। इस बार दोनों ही सीटों पर फोकस के साथ रणनीतिक दांव नजर आ रहा है।