बंबई हाई कोर्ट ने उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाने की बजाय कुछ लोगों के खिलाफ आरोप लगाने के लिए सीधे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को पत्र लिखने के चलन की शुक्रवार को निंदा की। न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर की खंडपीठ ने कहा कि कानून में अंकित प्रक्रिया को छोड़कर शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को पत्र लिखने का मकसद प्रचार पाना लगता है।
पीठ ने कोरेगांव-भीमा गांव में इस साल जनवरी में भड़की हिंसा के मामले में याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। हिंसा का पीड़ित होने का दावा करने वाले पुणे निवासी सतीश गायकवाड़ ने अपनी याचिका में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से मामले में जांच कराने की मांग की, वहीं दूसरी याचिका सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल मलिक चौधरी ने दाखिल की और राज्य सीआईडी से जांच कराने की मांग की।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल गंदगी फैलाने के लिए नहीं करने का लें संकल्प : प्रधानमंत्री
चौधरी की याचिका का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, ”पत्र में याचिकाकर्ता ने कई लोगों के खिलाफ व्यापक आरोप लगाये हैं और दरअसल एक पड़ोसी देश को भी इसमें शामिल किया है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की बजाय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिखते हैं।”
अदालत ने कहा कि कानून किसी व्यक्ति को पुलिस या मजिस्ट्रेट के पास जाने और शिकायत दर्ज कराने का अधिकार देता है। न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, ‘‘लगता है कि ये लोग केवल प्रचार और प्रसिद्धि चाहते हैं।’’ पीठ याचिकाओं पर अब 17 सितंबर को सुनवाई करेगी।