राजधानी दिल्ली में स्थित कुतुब मीनार परिसर में 27 हिंदू और जैन मंदिरों को दोबारा बनाए जाने की मांग वाली याचिका पर दिल्ली की एक अदालत ने सुनवाई को 27 अप्रैल तक के लिए टाल दिया है। बीते साल 24 दिसंबर को साकेत कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की थी और इसे 6 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया था। साकेत स्थित सिविल जज नेहा शर्मा की अदालत में दाखिल वाद में कहा गया है कि ‘मुगल बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिद बनवा दिया।
इसके साथ ही इस याचिका में यह भी दावा किया गया है कि तोड़े गए सभी 27 मंदिरों के पत्थर एवं निर्मित फूल पत्तियों, हिंदू धर्म के मुताबिक नक्काशी किए गए पत्थर एवं मंदिर के अन्य सामानों से मस्जिद बनाने का आरोप लगाया। याचिका में कहा गया है कि परिसर में स्थित उस मस्जिद में भगवान विष्णु, गणेश, कमल, स्वास्तिक आदि कई ऐसे चिन्ह मौजूद हैं जो यह साबित करता है कि यह जगह हिंदू मंदिरों की थी और उन्ही मंदिरो को तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गई है।
दिल्ली की अदालत में दाखिल इस याचिका में उस जगह पर देवी-देवताओं को पुनर्स्थापना करने और हिंदू और जैन धर्म के अनुयायियों को पूजा-पाठ करने का अधिकार देने की मांग की है। अदालत में यह मुकदमा भगवान विष्णु और पहले जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की ओर से दाखिल किया गया है। अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने याचिका में अदालत से केंद्र सरकार और भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग को एक ट्रस्ट बनाने का आदेश देने की भी मांग की है।
दाखिल याचिका के मुताबिक मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ने दिल्ली आते ही सबसे पहले हिंदुओ के 27 मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया जो ग्रहों की गणना के लिए महरौली में बनाए गए थे। महरौली को पहले मिहरावली कहा जाता था। इसमें यह भी कहा गया है कि जल्दी बाजी में मंदिरों को तोड़कर बची हुई सामग्री से ही कुव्वत उल इस्लाम नाम का मस्जिद सन 1192 में बना दिया गया। कुव्वत उल इस्लाम का मतबल इस्लाम की ताकत।
याचिका में कहा गया है कि मस्जिद बनाने का मकसद इबादत से ज्यादा स्थानीय हिंदू एवं जैन मंदिरों को तोड़ना था। उस मस्जिद में मुसलमानों ने कभी नमाज नहीं पढ़ी क्योंकि मस्जिद की दीवारों, खंभे, मेहराबों, दीवारों और छत पर जगह-जगह हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां थी। जिन्हें आज भी देखा जा सकता है।