दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में गढ़मुक्तेश्वर और मुरादाबाद के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग 24 के चौड़ीकरण में देरी को लेकर पीएनसी इंफ्राटेक लि. के पक्ष में 54 करोड़ रुपये से अधिक आबंटन के मध्यस्थता निर्णय को चुनौती दी गयी थी।
न्यायाधीश नवीन चावला ने कहा कि एनएचएआई की याचिका में कुछ भी नहीं है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि प्राधिकरण ने अदालत के जनवरी के आदेश के तहत राशि अदालत में जमा कर दी है। अदालत ने कहा कि सक्षम अदालत द्वारा जबतक कोई आदेश नहीं दिया जाता है, जमा राशि आठ सप्ताह बाद ब्याज के साथ पीएनसी के पक्ष में जारी कर दी जाएगी।
मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने 2018 के अपने आदेश में नुकसान के एवज में क्षतिपूर्ति के दावे को स्वीकार कर लिया था।
एनएचएआई और पीएनसी इंफ्राटेक लि. और भागीरथ इंजीनियरिंग लि. के संयुक्त उद्यम ने फरवरी 2005 में एक समझौता किया था।
यह समझौता गढ़मुक्केश्वर और मुरादाबाद के बीच एनएच 24 के चौड़ीकरण, सड़क पर एक पुल निर्माण और राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 87 पर पुलों के निर्माण के लिये था। अनुबंध कीमत 221.42 करोड़ रुपये थी। काम की शुरूआत 31 मार्च 2005 को हुई और इसे 30 सितंबर 2007 को पूरा किया जाना था। सड़क चौड़ीकरण परियोजना 22 महीने की देरी के बाद पूरी हुई जबकि सड़क पर पुल निर्माण (आरओबी) कार्य करीब 45 महीने बाद पूरा हुआ।
पीएनसी का दावा था कि काम में देरी का कारण एनएचएआई के सड़क कार्य और ढांचों के लिये बिना किसी बाधा वाला स्थल उपलब्ध कराने में नाकामी है। मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने 20 सितंबर 2018 को अपने आदेश में पाया था कि एनएचएआई काम में देरी के लिये जिम्मेदार है। एनएचएआई ने दावा किया था कि पीएनसी अपनी जिम्मेदरी निभाने में विफल रही और वह यह दावा नहीं कर सकती कि सरकारी कंपनी ने कथित रूप से परियोजना स्थल पर बिना किसी बाधा के पहुंच उपलब्ध कराने में चूक की।