दिल्ली की एक अदालत ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर द्वारा इस साल 5 जनवरी को जेएनयू परिसर में छात्रों और शिक्षकों पर हमले की एक अलग प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पवन सिंह राजावत ने बुधवार को आदेश पारित करते हुए कहा कि वह इस बात से संतुष्ट थे कि शिकायतकर्ता द्वारा की गई शिकायत पर एक अलग प्राथमिकी दर्ज करने के लिए किसी निर्देश की आवश्यकता नहीं थी।
हालांकि, अदालत ने अपराध शाखा के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) को एफआईआर की जांच पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया, जो इस संबंध में दर्ज की गई है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता सहित कई व्यक्तियों को लगी चोटें एक हिंसक कृत्य का परिणाम थीं। अदालत जेएनयू की प्रोफेसर सुचित्रा सेन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भीड़ के खिलाफ एक अलग प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी।
हिंसक घटना के दौरान याचिकाकर्ता को भी गंभीर चोटें आई थीं। बता दें कि दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने जेएनयू हिंसा मामले पर एक स्टेटस रिपोर्ट भी दाखिल की थी जिसमें कहा गया था कि मामले की जांच जारी है और सभी हमलावरों की पहचान करने और समय-सीमा में जांच के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं। बता दें कि 5 जनवरी 2020 को साबरमती टी-पॉइंट पर हुई घटना में आवेदक सुचरिता सेन भी घायल हो गई और उन्होंने 6 फरवरी 2020 को पीएस वसंत कुंज (उत्तर) में एक अलग शिकायत दर्ज की।
इस शिकायत को अपराध शाखा में स्थानांतरित कर दिया गया। जांच के दौरान, 20 फरवरी को सुचरिता सेन का बयान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत दर्ज किया गया। सुचरिता सेन का एमएलसी दर्ज किया गया। जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइश घोष सहित विश्वविद्यालय के 30 से अधिक छात्र घायल हो गए और एम्स ट्रॉमा सेंटर में ले जाने के बाद एक नकाबपोश भीड़ ने यूनिवर्सिटी में प्रवेश किया इसके बाद छात्रों और प्रोफेसरों पर लाठी और डंडों से हमला कर दिया गया।