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कोविड-19 : निजी अस्पतालों के मनमानी फीस वसूलने पर दिल्ली HC ने दखल देने से किया इनकार

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को ऐसा कोई निर्देश देने से शुक्रवार को इनकार कर दिया जिसमें यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया था कि कोविड-19 के लिए चिह्नित कोई भी निजी अस्पताल मरीजों से अत्यधिक शुल्क नहीं वसूले और न ही धन की कमी के कारण उनका इलाज करने से इनकार करे।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को ऐसा कोई निर्देश देने से शुक्रवार को इनकार कर दिया जिसमें यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया था कि कोविड-19 के लिए चिह्नित कोई भी निजी अस्पताल मरीजों से अत्यधिक शुल्क नहीं वसूले और न ही धन की कमी के कारण उनका इलाज करने से इनकार करे। 
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि हालांकि याचिका में उठाया गया मुद्दा अच्छा है लेकिन वह जनहित मुकदमे में कोई ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती जिसे लागू करना मुश्किल हो। पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘इस समय हम कोई निर्देश जारी नहीं करना चाहते।’’ 
पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अमित साहनी की याचिका का निस्तारण कर दिया जिसमें एक निजी अस्पताल द्वारा इलाज के लिए जारी शुल्क के संबंध में दिल्ली सरकार के 24 मई के परिपत्र का हवाला दिया गया था। पीठ ने कहा कि अत्यधिक शुल्क वसूलने के मामले में संबंधित पक्ष ऐसे अस्पताल के खिलाफ अदालत का रुख कर सकता है और जनहित याचिका में आम निर्देश नहीं दिया जा सकता। अदालत ने साहनी से इस याचिका में उठाए मुद्दे को लेकर दिल्ली सरकार का रुख करने के लिए कहा। 
याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 के मामले बढ़ने पर प्रदेश सरकार ने कई अस्पतालों को कोविड-19 अस्पताल घोषित किया और उसके तीन जून तक के आदेश में अधिकारियों ने तीन निजी अस्पतालों मूल चंद खैराती लाल अस्पताल, सरोज सुपर स्पैश्यिलिटी अस्पताल और सर गंगा राम अस्पताल को कोविड अस्पताल घोषित किया। 
ये अस्पताल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) मरीजों को 10 प्रतिशत आईपीडी और 25 प्रतिशत ओपीडी सेवाएं मुहैया कराने के लिए बाध्य हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने इन निजी कोविड-19 अस्पतालों में से एक का परिपत्र देखा जिसमें कोविड-19 मरीज के लिए न्यूनतम बिल तीन लाख रुपये तय किया गया और कहा गया कि मरीज को दो बेड/तीन बेड श्रेणी में चार लाख रुपये अग्रिम भुगतान करने पर ही भर्ती किया जाएगा और अकेले कमरे के लिए पांच लाख रुपये तथा आईसीयू के लिए आठ लाख रुपये का बिल देना होगा। 
जनहित याचिका में कहा गया है, ‘‘एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते शासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि निजी अस्पताल मरीजों से अत्यधिक शुल्क न वसूले और साथ ही जिन मरीजों को फौरन इलाज/आईसीयू की जरूरत है उन्हें पैसे नहीं होने के कारण भर्ती करने से इनकार नहीं किया जाए।’’ 

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