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दिल्ली HC ने 2006 के मुंबई विस्फोट के दोषी की याचिका पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से मांगा जवाब

दिल्ली हाई कोर्ट ने 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोट मामले में एक दोषी की याचिका पर सोमवार को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से जवाब मांगा है, जिसमें याचिकाकर्ता ने आरटीआई अधिनियम के तहत कुछ विशेष प्रकाशनों की प्रतियां मुफ्त में मांगी है। न्यायमूर्ति जयंत नाथ ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश को चुनौती देने वाले दोषी एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी की याचिका पर मंत्रालय के प्रकाशन विभाग के सीपीआईओ को नोटिस जारी किया। 

आयोग ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत सिद्दीकी द्वारा मांगी गई जानकारी को उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने अधिकारियों को दो सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 15 नवंबर को सूचीबद्ध कर दिया। 

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वर्तमान में, नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद सिद्दीकी को 11 जुलाई, 2006 के सिलसिलेवार बम धमाकों के लिए मौत की सजा सुनाई गई है। मुंबई में पश्चिमी लाइन के कई लोकल ट्रेनों में सात आरडीएक्स बम से विस्फोट किए गए थे, जिसमें 189 लोगों की मौत हो गई थी और 829 घायल हो गए थे। 

अपनी दलील में, दोषी ने कहा कि उसने इग्नू द्वारा जेल में मुफ्त में उपलब्ध कराए गए कई पाठ्यक्रम को पूरा किया है और विभिन्न विषयों के बारे में अधिक जानना चाहता है, इसलिए उसे अन्य पुस्तकों और पाठ्य-सामग्रियों की आवश्यकता है। 

उसने कहा कि चूंकि जेल के पुस्तकालय में कई पुस्तक उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए उसने आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के तहत उन प्रकाशनों/पुस्तकों की हार्ड कॉपी मांगी। सिद्दीकी की ओर से पेश वकील अर्पित भार्गव ने कहा कि कैदी ने अपने आवेदन में उल्लेख किया था कि वह गरीबी रेखा से नीचे का व्यक्ति है। चूंकि वह हिरासत में है और कैदी होने के नाते, वह इस तरह के सभी प्रकाशनों/पुस्तकों को पाने का हकदार है।’’ 

हालाँकि, अनुरोध को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि आवेदन में उल्लिखित पुस्तकें/प्रकाशन सामग्री पर मूल्य निधार्रित की गई हैं, इसलिए किसी भी परिस्थिति में आम जनता को मुफ्त में उनकी आपूर्ति नहीं की जा सकती है और उसे उन्हें खरीदने के लिए मुंबई में पुस्तक विक्रेता से संपर्क करने या या ऑनलाइन खरीदारी की सलाह दी थी। प्रथम अपीलीय प्राधिकरण (एफएए) और सीआईसी के समक्ष उनकी पहली और दूसरी अपील खारिज कर दी गई थी, जिसके बाद उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।