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सरकार की खुफिया और सुरक्षा संगठन आरटीआई के दायरे में आते हैं या नहीं दिल्ली HC करे तय : सुप्रीम कोर्ट

केंद्र सरकार के खुफिया और सुरक्षा संगठनों पर सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून लागू होने या न होने को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने अपना फैसला देने का दिल्ली हाई कोर्ट को निर्देश दिया है।

केंद्र सरकार के खुफिया और सुरक्षा संगठनों पर सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून लागू होने या न होने को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने अपना फैसला देने का दिल्ली हाई कोर्ट को निर्देश दिया है। साथ ही शीर्ष अदालत ने वरिष्ठता और पदोन्नति के संदर्भ में एक कर्मचारी को जानकारी उपलब्ध कराने का एक विभाग को निर्देश देने संबंधी उसका आदेश खारिज कर दिया है।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने सरकारी विभाग की उस आपत्ति पर निर्णय लिये बिना निर्देश दिया कि उस (विभाग) पर आरटीआई कानून लागू नहीं होता है। पीठ ने कहा, ‘‘विभाग की ओर से यह विशिष्ट प्रश्न उठाया गया था कि आरटीआई अधिनियम इस संगठन/विभाग पर लागू नहीं होता है।

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इसके बावजूद इस आपत्ति का निर्णय किए बिना हाई कोर्ट ने अपीलकर्ता को आरटीआई अधिनियम के तहत मांगे गए दस्तावेज प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह क्रम को उलट-पुलटने जैसा है।’’
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट को सबसे पहले संगठन या विभाग पर आरटीआई अधिनियम लागू होने के संबंध में फैसला करना चाहिए था। पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा है, ‘‘हम हाई कोर्ट को निर्देश देते हैं कि वह पहले अपीलकर्ता संगठन/विभाग पर आरटीआई अधिनियम के लागू होने के मुद्दे को लेकर फैसला करे और उसके बाद स्थगन आवेदन/एलपीए पर फैसला करे। इसका निर्धारण आठ सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाएगा।

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शीर्ष अदालत हाई कोर्ट के 2018 के फैसले के खिलाफ केंद्र द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विभाग को 15 दिनों के भीतर कर्मचारी को जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। केंद्र की ओर से पेश हुए वकील ने उच्च न्यायालय को बताया था कि जिस विभाग से सूचना मांगी गई है उसे आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 24(1) के तहत छूट दी गई है, इसलिए सीआईसी का आदेश गैर-कानूनी एवं आरटीआई अधिनियम की धारा 24 के प्रावधानों के उलट है।
आरटीआई अधिनियम की धारा 24 कुछ खुफिया और सुरक्षा संगठनों को भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से संबंधित जानकारी को छोड़कर पारदर्शिता कानून के दायरे से छूट देती है। हाई कोर्ट ने कहा था कि चूंकि कर्मचारी वरिष्ठता के संबंध में पूर्वाग्रहों का सामना कर रहा था, उसने ऊपर उल्लिखित जानकारी मांगी।
उसने यह भी कहा कि जानकारी न तो खुफिया जानकारी है, न ही सुरक्षा संबंधी और न ही याचिकाकर्ता संगठन की गोपनीयता को प्रभावित करती है। हाई कोर्ट ने कहा था, ‘‘याचिकाकर्ता से प्रतिवादी द्वारा मांगी गई जानकारी अधिनियम की धारा 24 के तहत नहीं आती है।

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