पुलिस द्वारा मीडिया में चयनित जानकारी लीक करने के मामले में पिंजड़ा तोड़ सदस्य की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है। महिला सदस्य को दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शनों के दौरान भड़की सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में गिरफ्तार किया गया है।
न्यायमूर्ति विभू बाखरू ने जेएनयू की छात्रा और पिंजड़ा तोड़ की सदस्य देवांगना कलिथा और दिल्ली पुलिस के वकीलों की दलीलों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनने के बाद कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। सुनवाई के दौरान कलिथा के वकील ने कोर्ट से कहा कि चुनिंदा लीक से उनका मतलब किसी व्यक्ति से नहीं बल्कि मीडिया को बताई गई जानकारी से है।
कलिथा की ओर से पेश होते हुए वकील अदित एस पुजारी ने कहा, ‘‘ मीडिया में जिस तरह से जानकारी लीक हुई है, यह उस तरह से चयनात्मक है। यह मेरे लिए गंभीर पूर्वाग्रह पैदा कर रहा है।’’ उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मीडिया में लीक होने के बाद उन्हें आरोपपत्र की कॉपी दी गई।
उन्होंने दावा किया कि दो जून को पुलिस ने इस मामले के संबंध में जो प्रेस नोट जारी किए थे, वह पुलिस के मीडिया परामर्श के भी विपरीत है। वहीं पुलिस ने कोर्ट से कहा कि मीडिया में जो प्रेस नोट जारी किए गए हैं, वे चयनीत लीक नहीं हैं, जैसा कि कलिथा ने आरोप लगाया है बल्कि लोगों के सामने सही तथ्य रखने के लिए यह किया गया।
पुलिस की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल अमन लेखी और वकील अमित महाजन तथा रजत नायर ने कोर्ट को बुधवार को बताया कि इस मामले की प्रकृति और महिला के खिलाफ लगे आरोप का खुलासा पहले जांच एजेंसी ने नहीं बल्कि समूह के ही सदस्यों ने सोशल मीडिया पर किया था।
विधि अधिकारी ने कहा कि दो जून को इस मामले में मीडिया में प्रेस नोट जारी करने का मतलब कलिथा को नुकसान पहुंचाना या उसकी छवि को खराब करना नहीं था बल्कि उन तथ्यों को सही करना था जिसे समूह के सदस्यों ने सोशल मीडिया पर डाला था क्योंकि संस्था की जवाबदेही भी इससे जुड़ी थी।
दिल्ली पुलिस के हलफनामे की शुरुआती पंक्ति जिसमें एजेंसी ने कहा कि महिला ने खुद ही मीडिया ट्रायल शुरू किया जिसके बाद यह प्रेस नोट जारी किया गया। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि यह रुख स्वीकार नहीं किया जा सकता है और अगर दिल्ली पुलिस इस तरह से सोचती है तो इसे सुधारने की जरूरत है।
पुजारी ने इस पर भी संज्ञान लिया कि माकपा नेता वृंदा करात ने जब दिल्ली हिंसा के मामले में प्राथमिकियों को वेबसाइट पर अपलोड करने की मांग की तो पुलिस ने इसका यह कहते हुए विरोध किया था कि यह मामला संवेदनशील है और प्राथमिकियों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे शिकायतकर्ता, गवाहों और आरोपियों के नामों का खुलासा होगा।
उन्होंने कहा कि हालांकि पुलिस ने खुद मीडिया में प्रेस नोट जारी करके इस विपरित काम किया। हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस यह नहीं कह सकती है कि याचिकाकर्ता मीडिया ट्रायल चाहती है इसलिए वह मीडिया में जानकारी जारी कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में कई आरोप लगाए गए हैं जो कि याचिका से परे है इसलिए इसे वापस लेने की सलाह दी जाती है।
इसके बाद लेखी ने कहा कि वह हलफनामे पर सिर्फ भरोसा नहीं करेंगे और अपने तर्क कानून को हिसाब से रखेंगे। हलफनामे में दिल्ली पुलिस ने कहा कि कलिथा ने खुद ही अपने पक्ष में सहानुभूति बटोरने और अपने पक्ष में माहौल तैयार करने के लिए ‘मीडिया ट्रायल’ शुरू किया।
कलिथा को पुरानी दिल्ली के दरियागंज क्षेत्र में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ पिछले साल में विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के मामले में 23 मई को गिरफ्तार किया गया था। अभी वह तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में हैं।