आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि ईडब्ल्यूएस के छात्रो को नकद के बदले स्कूल की यूनिफार्म मुहैया कराएं। बता दें कि मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि उच्च न्यायालय ने पहले दिल्ली सरकार को अगस्त 2014 में नकद के बजाय छात्रों को वर्दी प्रदान करने का आदेश दिया था।
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि चूंकि इस निर्देश में कोई संशोधन नहीं किया गया है, इसलिए अधिकारी इसका पालन करने के लिए बाध्य हैं। साथ ही हाईकोर्ट की बेंच ने आगे की सुनवाई की तारीख 25 अगस्त तय की।अदालत ने क्षेत्र के स्कूलों में आर्थिक रूप से वंचित और हाशिए पर रहने वाले छात्रों को संसाधनों के आवंटन से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई की।
आपको बता दें ये दलीलें बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 और दिल्ली के बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार नियम, 2011 में उल्लिखित प्रावधानों के कार्यान्वयन के आसपास केंद्रित हैं।दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि सरकार वर्तमान में छात्रों को किताबें और अध्ययन सामग्री प्रदान कर रही है और अगले शैक्षणिक सत्र से यूनिफॉर्म प्रदान करने की योजना है। त्रिपाठी ने कहा कि स्कूल संचालक सर्वे करने और अधिकारियों से मंजूरी लेने के बाद बाजार से यूनिफॉर्म खरीद सकते हैं।इस बीच, सरकार छात्रों को यूनिफॉर्म खरीदने के लिए नकद राशि प्रदान करेगी।
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि नकद भुगतान आदेश की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है। अनुपालन में एक स्कूल या स्कूलों के समूह को एक दर्जी प्रदान करना शामिल होगा। सरकार को संकेत देना चाहिए कि वह 50 रुपये प्रति मीटर कपड़े को मंजूरी देगी। यदि स्कूल प्रशासक दावा करते हैं कि 50 रुपये प्रति मीटर के हिसाब से कोई कपड़ा उपलब्ध नहीं है, तो यह दृष्टिकोण अपर्याप्त है। मामले में कुछ निजी स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता कमल गुप्ता ने तर्क दिया कि ईडब्ल्यूएस श्रेणी के छात्रों को सालाना 1500 रुपये की मामूली राशि दी जाती है, जो उनके अनुसार अपर्याप्त है और ईडब्ल्यूएस बच्चों के लिए अपमानजनक है। हाईकोर्ट अदालत ने यह कहते हुए जवाब दिया कि दिल्ली ईडब्ल्यूएस छात्रों को सहायता प्रदान करने के कानूनी दायित्व से मुक्त नहीं है।