सफुरा जरगर की जमानत याचिका पर दिल्ली पुलिस को निर्देश लेने के लिए एक दिन का वक्त मिला - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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सफुरा जरगर की जमानत याचिका पर दिल्ली पुलिस को निर्देश लेने के लिए एक दिन का वक्त मिला

जरगर की ओर से पेश हुईं वकील नित्या रामकृष्णन ने कहा कि महिला नाजुक हालत में हैं और चार महीने से ज्यादा की गर्भवती हैं और अगर पुलिस को याचिका पर जवाब देने के लिए वक्त चाहिए तो छात्रा को कुछ वक्त के लिए अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए।

दिल्ली पुलिस ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट से यूएपीए के तहत गिरफ्तार जामिया समन्वय समिति की सदस्य सफुरा  जरगर की जमानत याचिका पर निर्देश लेने के लिए एक और दिन का समय देने की गुजारिश की है। सफुरा ने फरवरी में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित एक मामले में जमानत की मांग की है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले पर निर्देश लेने के लिए एक दिन का वक्त मांगा और कहा कि अगर उन्हें रियायत दी जाती है तो यह “ व्यापक हित में“ होगा। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अमन लेखी ने मेहता का साथ देते हुए कहा कि वे मामले के गुण-दोष के आधार पर दलील करने को तैयार हैं लेकिन इस चरण में उनका इरादा गुण दोष पर विचार करने का नहीं है। 
जरगर की ओर से पेश हुईं वकील नित्या रामकृष्णन ने कहा कि महिला नाजुक हालत में हैं और चार महीने से ज्यादा की गर्भवती हैं और अगर पुलिस को याचिका पर जवाब देने के लिए वक्त चाहिए तो छात्रा को कुछ वक्त के लिए अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए। हाई कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल (एसजी) मेहता से मंगलवार को निर्देश लेकर आने को कहा। पुलिस ने याचिका की प्रतिक्रिया में स्थिति रिपोर्ट भी दायर की है। 
जामिया समन्वय समिति की सदस्य जरगर को 10 अप्रैल को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने गिरफ्तार किया था। उन्होंने चार जून के निचली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्हें जमानत देने से मना किया गया था। सुनवाई के दौरान मेहता और लेखी की दिल्ली सरकार के स्थायी वकील (अपराध) राहुल मेहरा से बहस हो गई। 
मेहरा ने इस मामले में दिल्ली पुलिस की तरफ से दो वरिष्ठ विधि अधिकारियों के पेश होने पर आपत्ति जताई। मेहरा ने दलील दी कि उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा के अन्य मामले के विपरीत जिनमें एसजी की अगुवाई में दिल्ली पुलिस की ओर से वकीलों की टीम के पेश होने के लिए जरूरी मंजूरी ली गई है, मौजूदा मामले में इस प्रक्रिया का अनुसरण नहीं किया गया है। 
मेहरा ने कहा, “वे जानते हैं कि ऐसे मामलों में मेरा नजरिया मानवीय होता है कि ना कि उनकी मर्जी के मुताबिक होता है। मैं दिल्ली पुलिस का मुख पत्र नहीं बन सकता हूं, मैं कोर्ट का अधिकारी हूं।” इस पर लेखी ने पलटवार किया कि मुवक्कील वकील चुनता है। वकील खुद को मुवक्कील पर नहीं थोप सकता है। 
उन्होंने कहा कि यह विवाद कोर्ट को मुद्दे से भटका सकता है और इस मामले पर मेहरा की आपत्ति को दरकिनार किया जा सकता है। इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई खत्म करते हुए दिल्ली पुलिस के वकील को कल तक यह विवाद खत्म करने को कहा। निचली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जब आप अंगारे के साथ खेलते हैं, तो चिंगारी से आग भड़कने के लिए हवा को दोष नहीं दे सकते। 
कोर्ट ने यह भी कहा था कि जांच के दौरान एक बड़ी साजिश देखी गई और अगर पहली नजर में साजिश, कृत्य के सबूत हैं, तो किसी भी एक षड्यंत्रकारी द्वारा दिया गया बयान, सभी के खिलाफ स्वीकार्य है। कोर्ट ने कहा था कि भले ही आरोपी (जरगर) ने हिंसा का कोई प्रत्यक्ष कार्य नहीं किया, लेकिन वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपने दायित्व से बच नहीं सकती हैं। उनकी खराब चिकित्सा स्थिति को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने तिहाड़ जेल के अधीक्षक से उन्हें पर्याप्त चिकित्सकीय मदद और सहायता मुहैया कराने के लिए कहा था। 
पुलिस ने पहले दावा किया था कि जरगर ने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे सड़क को कथित रूप से बाधित किया था और लोगों को भड़काया था, जिसके बाद इलाके में दंगे हुए। पुलिस ने दावा किया कि वह उत्तर पूर्वी दिल्ली में फरवरी में सांप्रदायिक दंगे भड़काने के लिए ‘पूर्व नियोजित साजिश’ का कथित रूप से हिस्सा थी। उत्तर पूर्वी दिल्ली में फरवरी के अंत में संशोधित नागरिकता कानून के विरोधियों और समर्थको के बीच हुई हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी।

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