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प्रदर्शनस्थल घर की तरह थे और हमें ये दिन जीवनभर याद रहेंगे : किसानों ने कहा

दिल्ली के तीन सीमा स्थलों पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक समय तक आंदोलन करने वाले कई किसानों ने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहा कि प्रदर्शनस्थल घर की तरह थे और उन्हें ये दिन जीवनभर याद रहेंगे।

दिल्ली के तीन सीमा स्थलों पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक समय तक आंदोलन करने वाले कई किसानों ने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहा कि प्रदर्शनस्थल घर की तरह थे और उन्हें ये दिन जीवनभर याद रहेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने घोषणा की है कि हजारों प्रदर्शनकारी 11 दिसंबर से विरोध स्थलों को खाली करना शुरू कर देंगे।
इस घोषणा के बाद पटियाला के रहने वाले लगभग 65 वर्षीय अमरीक सिंह ने कहा कि उन्होंने सिंघू बॉर्डर पर अपने तम्बू में घर जैसा महसूस किया और इसे छोड़ने की बात सोचकर लग रहा कि कुछ छूट रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे यह सब पीछे छोड़ने और संघर्ष की उन सभी यादों, खुशी के पल और दोस्तों को छोड़ने का मन नहीं करता है।’’ पिछले साल 26 नवंबर से किसानों ने दिल्ली के सीमावर्ती स्थल -सिंघू, गाजीपुर और टीकरी में राजमार्गों की घेराबंदी कर दी थी और अपने रहने का इंतजाम कर लिया था।
लुधियाना के एक किसान सौदागर सिंह ने सालभर के विरोध प्रदर्शनों के दौरान अपने संघर्षों को याद करते हुए कहा कि विरोध प्रदर्शनस्थल पर उन्हें कई नए दोस्त मिले। उन्होंने कहा, ‘‘हमने सोचा था कि सरकार हमारी नहीं सुनेगी और हमें यहीं रहना होगा। लेकिन आखिरकार हम जीत गए और कृषि कानून निरस्त हो गए। अब घर जाने का समय है और हमें अब अजीब लग रहा है।’’
कई किसान प्रदर्शनकारियों ने घर जाने की तैयारी करते हुए कहा कि वे रोजाना इस्तेमाल की कई चीजें यहीं छोड़ देंगे और अपने निजी सामान और वाहनों को ले जाएंगे। सौदागर सिंह ने कहा, ‘‘घर वापस ले जाने के लिए बहुत कुछ नहीं है। इसमें से अधिकतर सामान स्थानीय लोगों को दिया जाएगा, जिनमें से कई यहां आते रहे।’’ केंद्र द्वारा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने और किसानों की अधिकतर मांगों को स्वीकार करने के साथ, कई प्रदर्शनकारियों ने महसूस किया कि यह आंदोलन को समाप्त करने और घर वापस जाने का समय है।
ज्यादातर किसानों का कहना कि सिंघू बॉर्डर पर विरोध का उनका अनुभव जीवनभर याद रहेगा और वे इस जगह को याद करेंगे। सिंघू बॉर्डर पर एक प्रदर्शनकारी हरकीरत ने कहा, ‘‘हमने विरोध के दौरान मारे गए अपने किसान भाइयों के लिए एक स्मारक बनाये जाने की मांग की है। एक बार यहां स्मारक बन जाएगा तो हम बार-बार इस जगह पर आएंगे।’’ किसान संगठनों का दावा है कि कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर के आंदोलन के दौरान विभिन्न स्थानों पर 700 से अधिक किसानों की मौत हुई। ऐसे कई प्रदर्शनकारी भी हैं जो अपने नेताओं की इच्छा पर आने वाले कई दिनों तक धरना स्थल पर रुकने के लिए तैयार हैं।
अयोध्या से आए कमलापति बागी ने कहा, ‘‘हमने यहां सभी व्यवस्था की। बीच-बीच में हम अपने घर जाते थे और विरोध में शामिल होने के लिए फिर से वापस आ जाते थे। जरूरी हुआ तो हम महीनों और वर्षों तक रह सकते हैं।’’ फतेहगढ़ साहिब के एक युवा प्रदर्शनकारी बलप्रीत सिंह ने कहा कि विरोध समाप्त हो सकता है लेकिन किसानों के लंबित मुद्दों पर संघर्ष जारी रहेगा।

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