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पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की एडिटर्स गिल्ड,आईडब्ल्यूपीसी ने कड़ी निंदा की

मीडिया संगठनों ने गणतंत्र दिवस पर किसानों की ‘‘ट्रैक्टर परेड’’ और उस दौरान यहां हुई हिंसा की रिपोर्टिंग करने को लेकर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकियां दर्ज किये जाने की शुक्रवार को कड़ी निंदा की। साथ ही, उन्होंने इस कार्रवाई को मीडिया को ‘डराने-धमकाने’ की कोशिश बताया है। 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने वक्तव्य जारी कर मांग की कि ऐसी प्राथमिकियां तुरंत वापस ली जाएं तथा मीडिया को बिना किसी डर के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाए। वक्तव्य में कहा गया कि एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर तथा अपने प्रकाशनों पर देने पर पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया। 

गिल्ड ने कहा, ‘‘यह ध्यान रहे कि प्रदर्शन एवं कार्रवाई वाले दिन, घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों तथा पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिलीं। अत: पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें। यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था।’’ गिल्ड ने कहा कि वह ‘‘उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश पुलिस के डराने-धमकाने के तरीके की कड़ी निंदा करता है’’ जिन्होंने किसानों की प्रदर्शन रैलियों और हिंसा की रिपोर्टिंग करने पर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कीं। इन वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों में गिल्ड के पूर्व एवं मौजूदा पदाधिकारी शामिल हैं। 

गिल्ड ने रेखांकित किया कि इन प्राथमिकियों में आरोप लगाया गया है कि ट्वीट इरादतन दुर्भावनापूर्ण थे और लाल किले पर हुए उपद्रव का कारण बने। उसने कहा कि कि इससे ज्यादा कुछ भी सच्चाई से परे नहीं हो सकता है। गिल्ड ने कहा, ‘‘उसी दिन ढेर सारी सूचनाएं मिल रही थीं। ईजीआई ने पाया कि विभिन्न राज्यों में दर्ज ये प्राथमिकियां मीडिया को चुप कराने, डराने-धमकाने तथा प्रताड़ित करने के लिए थीं।’’ गिल्ड ने कहा कि ये प्राथमिकियां 10 अलग-अलग प्रावधानों के तहत दर्ज की गई हैं जिनमें राजद्रोह के कानून, सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ना, धार्मिक मान्यताओं को अपमानित करना आदि शामिल हैं। 

गिल्ड ने पहले की गई अपनी यह मांग भी दोहराई कि उच्चतर न्यायपलिका को इस बात पर गंभीर संज्ञान लेना चाहिए कि देशद्रोह जैसे कई कानूनों का इस्तेमाल ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’’ को बाधित करने के लिए किया जा रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाए कि इस तरह के कानूनों का धड़ल्ले से इस्तेमाल स्वतंत्र प्रेस के खिलाफ प्रतिरोधक के तौर पर नहीं किया जाए। 

इंडियन वूमंस प्रेस कोर (आईडब्ल्यूपीसी) ने भी वरिष्ठ पत्रकार एवं आईडब्ल्यूपीसी की संस्थापक अध्यक्ष मृणाल पांडे और अन्य पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के उत्तर प्रदेश पुलिस के फैसले की निंदा की है। यह प्राथमिकी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान कथित तौर पर उनके ‘‘असत्यापित’’ खबरें साझा करने को लेकर दर्ज की गई है। आईडब्ल्यूपीसी ने एक बयान में कहा कि उसका मानना है कि पांडे के खिलाफ आरोप वास्तविक स्थिति से ध्यान भटकाने के लिए जानबूझ कर की गई एक कोशिश है। 

आईडब्ल्यूपीसी ने कहा, ‘‘यह मीडिया को डराने-धमकाने और उसके अपने कहे मुताबिक चलने के लिए बाध्य करने की कोशिश है। ’’ साथ ही, पांडे और अन्य पत्रकारों पर यह आरोप उनकी छवित धूमिल करने की दुर्भावनापूर्ण कोशिश है। ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ ने कहा कि वह इस बारे में जान कर स्तब्ध है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पुलिस ने प्रतिष्ठित पत्रकारों एवं अन्य के खिलाफ देशद्रोह सहित अन्य आपराधिक कानूनों के आरोपों में प्राथमिकियां दर्ज की हैं। प्रेस क्लब ने कहा, ‘‘हम लखनऊ और भोपाल के अधिकारियों से अपने इस कदम को वापस लेने की अपील करते हैं। हम केंद्रीय गृह मंत्रालय से भी स्थिति का पुन:आकलन करने की अपील करते हैं और उप्र तथा मप्र सरकार को आगाह करने को कहते हैं।’’ 

अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को बताया था कि किसानों की ट्रैक्टर परेड और उस दौरान हुई हिंसा के सिलसिले में नोएडा पुलिस ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर और छह पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह समेत अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया है। जिन पत्रकारों के नाम प्राथमिकी में हैं, उनमें मृणाल पांडे, राजदीप सरदेसाई, विनोद जोस, जफर आगा, परेश नाथ और अनंत नाथ शामिल हैं। एक अनाम व्यक्ति के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई है। मध्य प्रदेश पुलिस ने भी थरूर और छह अन्य पत्रकारों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की है। यह प्राथमिकी हिंसा की घटना पर उनके कथित तौर पर गुमराह करने वाले ट्वीट को लेकर दर्ज की गई है।