नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट में प्राइवेट स्कूलों से बढ़ी फीस वसूलने की बनी अनिल देव सिंह कमेटी ने अर्जी लगाई है। वहीं अपनी जांच को पूरा करने के लिए दिसंबर तक का समय मांगा है। जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने इस पर दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर 22 अप्रैल तक जवाब देने को कहा है। क्योंकि कमेटी ने अब तक की अपनी रिपोर्ट में हाईकोर्ट को बताया है कि वसूल किए जाने वाली रकम करीब 750 करोड़ रुपए है। बता दें कि यह कमेटी 8 साल पहले गठित की गई थी। लेकिन, 8 साल पूरे होने को है और अब तक अभिभावकों को वसूली गई अतिरिक्त फीस स्कूलों से वापस नहीं मिल पाई है।
13 अंतरिम रिपोर्ट पेश कर चुकी है कमेटी
गौरतलब है कि 2011 से अब तक अनिल देव सिंह कमेटी 13 अंतरिम रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर चुकी है। इन रिपोर्ट्स में कमेटी ने जो चीजें उजागर की हैं वे सिस्टम और सरकार पर सवाल खड़े करने के साथ चौंकाती है। हाईकोर्ट में दी रिपोर्ट में बताया है कि उसने करीब 1100 प्राइवेट स्कूलों का इंस्पेक्शन किया। इसमें 604 प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं जिनको 750 करोड़ रुपए अभिभावकों को लौटाने हैं, जो कि उनसे बढ़ी हुई फीस के नाम पर वसूले गए थे।
हर स्कूल को करीब 10 लाख से लेकर 20 करोड़ रुपए तक की बढ़ी हुई फीस की रकम अभिभावकों को वापस करनी है। लेकिन स्कूल लगातार कोर्ट में इस मामले को लंबा खींचकर पैसे देने से बचना चाहते हैं। इन 604 स्कूल्स में से बमुश्किल 3 से 4 स्कूलों ने ही कुछ पैसे अभिभावकों को वापस किए हैं। ज्यादातर बड़े और नामी स्कूलों ने ये पैसे लौटाने की बजाए हाई कोर्ट के आदेश को ही डबल बेंच में चुनौती दे रखी है। उनकी याचिका पर अगली सुनवाई 12 जुलाई को होनी है।
1997 में सबसे पहली चुनौती
फीस वापस करने के मामले में चुनौती सबसे पहले 1997 में दी गई थी। वकील अशोक अग्रवाल ने पहली याचिका तब लगाई थी। उस समय बनी जस्टिस संतोश दुग्गल कमेटी के हाथ कुछ खास नहीं लगा था और प्राइवेट स्कूल अभिभावकों के 400 करोड़ रुपए हड़पे गए थे। अब 8 साल से काम कर रही अनिल देव कमेटी को 750 करोड़ रुपए अभिभावकों को दिलाने हैं।
इसमें जस्टिस अनिल देव के अलावा सीए जीएस कोचर व शिक्षािवद आरके शर्मा को शामिल किया गया था। इसके अलावा 10 लोगों को ऑफिस स्टाफ के तौर पर नियुक्त किया गया था। कमेटी का खर्च दिल्ली सरकार प्राइवेट स्कूल से वसूल रही है और प्राइवेट स्कूल अभिभावकों से ही यह वसूल रहे होंगे। इस पर ही अब हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल तक दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है।
200 स्कूलों के नहीं थे रिकॉर्ड्स
हाईकोर्ट में जांच के लिए समय की मांग के साथ पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि 200 स्कूल ऐसे मिले हैं, जिनके रिकॉर्ड्स बोगस हैं। इन स्कूलों ने अभिभावकों से लिए पैसे का रिकॉर्ड रखने के लिए रजिस्टर तक नहीं बनाए। इन 200 स्कूलों के अपने बैंक अकाउंट भी नहीं हैं। जबकि बिना बैंक अकाउंट खुलवाए प्राइवेट स्कूलों को मान्यता नहीं दी जा सकती है।
इसके अलावा शिक्षकों के 3 महीने का एडवांस वेतन बैंक अकाउंट में रखना भी स्कूलों के लिए अनिवार्य होता है। इससे अधिकारी और सरकार से जुड़े लोगों की मिलीभगत भी उजागर होती है। क्योंकि इसके बिना यह स्कूल चल नहीं सकते थे।