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भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के संसदीय क्षेत्र में घमासान

पहले से ही गुुटबाजी के भंवर में फंसी दिल्ली प्रदेश भाजपा एक बार गुटबाजी के झंझावात में उलझती दिखाई दे रही है। ताजा मामला नवीन शाहदरा जिले का।

नई दिल्ली : पहले से ही गुुटबाजी के भंवर में फंसी दिल्ली प्रदेश भाजपा एक बार गुटबाजी के झंझावात में उलझती दिखाई दे रही है। ताजा मामला नवीन शाहदरा जिले का है, जहां जिला अध्यक्ष कैलाश जैन ने एक साथ छह मंडलों के अध्यक्ष बदल दिए हैं। इसके बाद से ही गुटबाजी ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है, जिसकी आंच प्रदेश अध्यक्ष तक जाती दिख रही है। क्षेत्र में एक बार फिर से यह चर्चा जोर पकड़ने लगी की प्रदेश अध्यक्ष जब अपने ही संसदीय क्षेत्र की गुटबाजी को नहीं रोक पा रहे हैं, तब वे पूरे प्रदेश की गुटबाजी पर कैसे लगाम कसेंगे।

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीते मंगलवार को नवीन शाहदरा जिले के अध्यक्ष कैलाश जैन ने शिव विहार मंडल में चंद्रभान, गोकलपुर में विनोद शर्मा, हर्ष विहार में देवेन्द्र शर्मा, अशोक विहार में विकास त्यागी, वेलकम में नवल किशोर और सुभाष मोहल्ला मंडल में संदीप चौधरी को मंडल अध्यक्ष नियुक्त करने की घोषणा की। बताया जा रहा है कि पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव तक निगम पार्षद बन चुके पदाधिकारियों के अलावा और किसी भी बदलाव के लिए तैयार नहीं थी।

यही नहीं इन नियुक्तियों से पहले किसी की अनुमति तक नहीं ली गई थी। इस घोषणा पर पहली प्रतिक्रिया प्रदेश महामंत्री राजेश भाटिया की तरफ से आई, जिन्होंने इन सभी नियुक्तियों को असंवैधानिक घोषित करते हुए निरस्त कर दिया। मजेदार बात यह हुई की इसके बाद भी इन सभी को नियुक्त कर दिया गया। जिलाध्यक्ष से नाराज चल रहे पदाधिकारी इन नियुक्तियों के बाद और मुखर हो गए। सोशल मीडिया पर जिलाध्यक्ष के इस निर्णय की जमकर आलोचना हुई। पुनित त्यागी ने जिलाध्यक्ष को सबोली मंडल की याद दिलाई, जहां निगम पार्षद के पति पद पर बने हुए हैं, तो वहीं अशोक नगर के मंडल अध्यक्ष को लेकर जैन पर निजी स्वार्थ पूर्ति का आरोप लगा। अजय शर्मा ने ऐसे निर्णयों से पहले कार्यकर्ताओं से मशवरे की सलाह दी, तो मनोज अग्रवाल ने इसे भी कांग्रेस की चाल करार दे दिया।

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इस पर प्रदेश महामंत्री राजेश भाटिया ने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया तो वहीं प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का कहना है कि दरअसल जिले का गठन हो ही नहीं पाया था। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के निर्देश के बाद जिले के गठन का दबाव था। इसकी वजह से उनकी अनुमति से ही इन मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति हुई है। राजेश भाटिया के आदेश को कॉम्यूनिकेशन गैप बताते हुए उन्होंने सफाई दी कि भाटिया को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उन्होंने इसकी अनुमति दे दी है। वहीं पूर्व अध्यक्षों के बदलाव पर उनका कहना है कि वे लोग तो जिले में होने वाले प्रदेश अध्यक्ष के कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हो रहे थे। ऐसे लोगों के हाथों में चुनाव जिताने की जिम्मेदारी कैसे दी जा सकती है।

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