दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह ऐसे बच्चों के बारे में जानकारी जुटाए जो कोविड-19 के दौरान अनाथ हो गए हैं और माता-पिता में से दोनों अथवा एक की मौत की वजह से परेशानी में हैं। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि माता-पिता में से दोनों या एक की मौत की वजह से बच्चों को सिर्फ नुकसान ही नहीं होता, बल्कि वे वेदना की स्थिति में पहुंच जाते हैं।
उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों को निर्देश दिया कि वे सभी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, पुलिस थानों, स्कूलों, आंगनवाड़ी कर्मियों और अस्पतालों से संपर्क कर ऐसे बच्चों के बारे में सूचना हासिल करें जिनके माता-पिता में से एक या दोनों की मौत हो चुकी है। इसने दिल्ली के प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) से कहा कि वह यहां के सभी अस्पतालों को निर्देश दें कि वे बिना किसी विलंब के, मुख्यत: मृत्यु होने से एक दिन के भीतर महिला एवं बाल विकास विभाग को रोगियों की सूचना दें, जहां माता-पिता में से दोनों या एक की मौत हो चुकी है। पीठ ने मामले पर छह घंटे तक सुनवाई की।
इसने कहा कि जिस तरह जन्म या मृत्यु प्रमाणपत्र आवश्यक है, उसी तरह राज्यों के लिए ऐसे बच्चों के बारे में सूचना जुटाना अनिवार्य है जो अनाथ हो गए हैं, और इस सूचना को कानून के हिसाब से गोपनीय रखा जाए। अदालत ने यह निर्देश तब दिया जब गैर सरकारी संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से पेश अधिवक्ता प्रभसहाय कौर ने कहा कि इस संबंध में सूचना का पूरी तरह अभाव है कि महामारी के दौरान कितने बच्चे अनाथ हुए हैं।
उन्होंने कहा कि दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने दिल्ली में जहां ऐसे बच्चों की संख्या 1,436 बताई है जिनके माता-पिता में से एक या दोनों की मौत चुकी है, वहीं बाल कल्याण समितियों ने इस तरह के 15 बच्चों के बारे में सूचना दी है। दिल्ली सरकार की वरिष्ठ अधिकारी रश्मि सिंह ने अदालत को सूचित किया कि कई परिवार ऐसे हैं जो अपने बच्चों का ब्योरा देने को तैयार नहीं हैं। सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि वे अनाथ हुए बच्चों को अनुग्रह राशि उपलब्ध कराने के लिए एक नीति तैयार कर रहे हैं।