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चुनाव का इतिहास बताते हैं बैलेट बॉक्स

देश के चुनावी इतिहास को जानना चाहते हैं तो बैलेट बॉक्स देख सकते हैं। सन 1951-52 से अब तक देश के साथ बॉक्स का रूप भी बदला है।

नई दिल्ली : देश के चुनावी इतिहास को जानना चाहते हैं तो बैलेट बॉक्स देख सकते हैं। सन 1951-52 से अब तक देश के साथ बॉक्स का रूप भी बदला है। शुरुआती दिनों में जहां इन बॉक्स का आकार छोटा होता था वहीं समय और मतदाता की संख्या के साथ इसका आकार भी बढ़ता गया। चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारी की माने तो सन 1951-52 में मतदान के लिए करीब एक फुट आकार का बैलेट बॉक्स इस्तेमाल किया जाता था। लोहे के इस बॉक्स में पर्ची डालने के लिए अगल से जगह होती थी।

1962 में इसमें बदलाव किया गया और आकार बढ़कर डेढ़ फुट के करीब पहुंच गया। लोहे के इन बैलेट बॉक्स में भी मतदाता पर्ची डालकर अपना अपना मत दे सकते थे। 1977 में इस बॉक्स को बदल दिया गया और आकार बढ़कर करीब दो फुट का हो गया। हरे रंग के इस बैलेट बॉक्स में भी ऊपर से ही पर्ची डाल सकते हैं। 1984 में इस बैलेट बॉक्स का बदलकर गुलाबी रंग का हो गया।

इस बार टीन के बॉक्स से बैलेट बॉक्स का निर्माण किया गया। हालांकि आकार में कोई खास बदलाव नहीं किया गया। वहीं 1993 में फिर से बैलेट बॉक्स का आकार और रंग बदल दिया गया। हालांकि आकार में कुछ ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ लेकिन बैलेट बॉक्स का रंग फिर से बदलकर हरा कर दिया गया। इस संबंध में अधिकारी ने बताया कि समय और मतदाता की संख्या के साथ समय- समय पर बैलेट बॉक्स में परिवर्तन होता रहा है।

1989 में आई थी ईवीएम
देश में ईवीएम को लेकर चाहे सवाल उठाए जा रहे हो लेकिन वर्षों से इसी के माध्यम से चुनाव करवाया जा रहा है। दिल्ली के चुनाव में 1989 में ईवीएम का इस्तेमाल हो रहा है। पहले पायलेट प्राजेक्ट के तहत ईवीएम का प्रयोग किया गया लेकिन धीरे धीरे इसे पूरी दिल्ली में लागू कर दिया गया। अब दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम, लोकसभा सहित कॉलेजों के चुनाव भी इसी की मदद से करवाया जा रहा है।

– राकेश शर्मा

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