नई दिल्ली : दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के भीतर घमासान मचा हुआ है। एक तरफ प्रदेश प्रभारी पीसी चाको के खिलाफ कांग्रेस का एक गुट खड़ा है तो दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित के खिलाफ दूसरा गुट। प्रदेश कांग्रेस में हावी गुटबाजी के कारण ही दिल्ली में कांग्रेस की हालत पतली है। विधानसभा चुनाव सिर पर है। अगर तय सीमा में चुनाव होते हैं तो छह महीने का समय बचा है, संभावना इस बात की भी है कि अक्टूबर में ही हरियाणा के साथ भी हो सकते हैं। ऐसे में तो कांग्रेस के पास बहुत समय नहीं है। बहरहाल इस बीच कांग्रेस में राजनीति चरम पर पहुंच चुकी है।
अभी दिल्ली पार्टी के भीतर दो तरह की बातें हो रही हैं। एक गुट शीला दीक्षित को उम्र दराज करार देकर तथा लोकसभा चुनाव की हार थोपकर हटाने के लिए प्रपंच रच रहे हैं तो दूसरी तरफ लोकसभा सहित पिछले चार चुनावों की हार का ठीकरा प्रदेश प्रभारी पीसी चाको के सिर फोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि चाको केरल के हैं उनके साथ भाषा की समस्या आज तक सॉल्व नहीं हुई। बहरहाल पार्टी के भीतर अब यह आवाज भी उठने लगी है कि दोनों को ही हटा दिया जाए। पार्टी दोनों पदों पर नए चेहरा लाए, प्रदेश प्रभारी भी दिल्ली का होना चाहिए।
प्रदेश प्रभारी तो किसी को भी बनाया जा सकता है लेकिन जैसे ही प्रदेश अध्यक्ष की बात सामने आती है तो दिल्ली में कोई चेहरा नजर नहीं आता है। कुछ कांग्रेसी जरूर जेपी अग्रवाल का नाम सुझाते हैं। बता दें कि प्रदेश प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष दोनों को हटाने के लिए कई स्तर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र लिखा गया है। अब फैसला राहुल गांधी के पाले में है। लेकिन यह समस्या तब तक हल नहीं हो सकती है तब तक की राष्ट्रीय अध्यक्ष का मसला खत्म नहीं होता। एआईसीसी के लिए भी नए अध्यक्ष की खोज चल रही है। जब तक उस पर कोई अंतिम फैसला नहीं होता, तब तक दिल्ली में भी किसी तरह का बदलाव संभव नहीं है।
लोकसभा चुनावों में हार के बाद राहुल गांधी की तरह ही हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित तमाम राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों ने अपना इस्तीफा पार्टी आलाकमान को भेजा हुआ है। अभी तक उन इस्तीफों पर कोई फैसला नहीं हो सका है। बहरहाल चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष के लिए नए चेहरे की खोज की जा रही है, लेकिन साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि शीला दीक्षित विधानसभा चुनावों तक बनी रहेंगी।
कौन होगा सीएम का चेहरा… दूसरी तरफ दिल्ली में विधानसभा चुनाव को देखते हुए सीएम के चेहरे की चर्चा भी शुरू हो चुकी है। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव तो शीला दीक्षित की अगुवाई में ही लड़ा जाएगा, लेकिन सीएम पद के लिए चेहरा दूसरा होगा।
फिलहाल पार्टी के भीतर नजर घुमाने पर कोई भी ऐसा चेहरा नहीं दिखता है जिस चेहरे को मुख्यमंत्री के लिए उपयुक्त ठहराया जा सके। ऐसे में कांग्रेस के लिए उस समय विकट स्थिति हो जाएगी जब आम आदमी पार्टी और भाजपा दोनों ही मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ मैदान में होंगे।
– सुरेन्द्र पंडित