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कृषि कानून के खिलाफ किसनों का आंदोलन जारी, सरकार से फिर बातचीत का इंतजार

किसान आंदोलन का रविवार को 67वां दिन है। आंदोलनरत किसानों की मांगों को लेकर सरकार और प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे यूनियनों के बीच एक बार फिर बातचीत शुरू होने का इंतजार हो रहा है।

किसान आंदोलन का रविवार को 67वां दिन है। आंदोलनरत किसानों की मांगों को लेकर सरकार और प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे यूनियनों के बीच एक बार फिर बातचीत शुरू होने का इंतजार हो रहा है। तीन कृषि कानूनों को लेकर बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए सरकार और आंदोलनरत किसान दोनों तैयार हैं। 
हालांकि, अगली बातचीत का एजेंडा क्या होगा, इस पर तस्वीर साफ नहीं है, क्योंकि सरकार ने नये कृषि कानूनों के अमल पर डेढ़ साल तक रोक लगाने का प्रस्ताव दिया है। इसे किसान यूनियनों ने पहले ही खारिज कर दिया है और अब तक कोई नया प्रस्ताव नहीं आया है। सरकार ने बातचीत को आगे बढ़ाने की बात जरूर कही है। 
संसद में एक फरवरी को आम बजट पेश होने से पहले शनिवार को सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आश्वासन दिया कि सरकार खुले दिमाग से कृषि कानूनों के मुद्दे पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार का रुख वैसा ही है, जैसा 22 जनवरी को था, और कृषि मंत्री द्वारा दिया गया प्रस्ताव अभी भी कायम है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि मंत्री को सिर्फ एक फोन कॉल कर बातचीत को आगे बढ़ाया जा सकता है। 
केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल लाए गए कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को निरस्त करने और एमएसपी पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर 2020 से किसान डेरा डाले हुए हैं। नये कानूनों के मसले पर सरकार के साथ किसान यूनियनों की 11 दौर की वार्ताएं बेनतीजा रही हैं और अब अगले दौर की वार्ता का इंतजार किया जा रहा है। 
भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के जनरल सेक्रेटरी हरिंदर सिंह लाखोवाल ने कहा कि किसान वार्ता के लिए तैयार है और सरकार की ओर से कोई नया प्रस्ताव आए तो उस पर विचार जरूर किया जाएगा। प्रधानमंत्री के आश्वासन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि किसानों का फैसला बहुमत से नहीं बल्कि सर्वसम्मति से होता है और आज (रविवार) संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में इस पर चर्चा जरूर होगी। उन्होंने कहा, किसानों के मसले का समाधान बातचीत के जरिए ही होगा और हम हमेशा बातचीत के पक्ष में हैं। हम नये कानूनों के साथ-साथ एमएसपी के मसले पर भी सरकार से बातचीत करना चाहते हैं क्योंकि इस मसले पर कभी कोई ठोस वार्ता नहीं हुई है। गणतंत्र परेड के दौरान हुई हिंसा को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आंदोलन में शामिल किसान यूनियनों ने पहले ही इसकी कड़ी निंदा की है। 
ऑल इंडिया किसान सभा के पंजाब में जनरल सेक्रेटरी मेजर सिंह पुनेवाल ने भी कहा कि ट्रैक्टर रैली के दौरान जो हिंसा हुई उसमें शरारती तत्व शामिल थे, जिनका मकसद किसानों के आंदोलन को बदनाम करना था। मेजर सिंह ने भी कहा कि किसान सरकार के साथ बातचीत के लिए तैयार है। 
देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर स्थित प्रदर्शन स्थलों सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का जमावड़ा फिर बढ़ गया है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के प्रदर्शन के दौरान रो पड़ने के बाद आंदोलन को मजबूती मिली है। प्रदर्शनकारी किसान भी मानते हैं कि राकेश टिकैत के आंसू से उनके आंदोलन को संजीवनी मिल गई है। हरिंदर सिंह लाखोवाल ने बताया कि किसान राकेश टिकैत को सम्मानित करने की तैयारी में जुटे हैं। 

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