दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में लगभग एक साल पहले फरवरी में हुए दंगों में मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में यह मांग की गई है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग (डीएमसी) की तरह सभी गैर-न्याय निकायों द्वारा अदालत में दी गई किसी भी तथ्यान्वेषी रिपोर्ट को कोई कानूनी आधार नहीं होने का ऐलान किया जाए।
उत्तर पूर्वी दिल्ली में पिछले साल फरवरी में हुए दंगों में एक वकील की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की एक पीठ ने केंद्र, दिल्ली पुलिस और डीएमसी समेत विभिन्न गैर-न्यायेतर निकायों को नोटिस जारी कर उनका पक्ष पूछा है। दंगों के दौरान याचिकाकर्ता वकील के स्कूल को आग लगा दी गई थी। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा के बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी 2020 को सांप्रदायिक झड़पें हुई थीं और इस दौरान 53 लोगों की मौत हुई थी जबकि 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
याचिकाकर्ता की दलील है कि जब स्कूल को जलाए जाने के संबंध में दर्ज प्राथमिकी पर आरोप पत्र दायर किया जा चुका है तब गैर न्यायेतर निकायों द्वारा दी गई तथ्यान्वेषी रिपोर्ट सुनवाई की तय प्रक्रिया में हस्तक्षेप करेंगी। याचिका में मांग की गई कि इन रिपोर्टों को सार्वजनिक जगहों से हटाया जाए और यह घोषित किया जाए कि “कानून में इनकी कोई अहमियत नहीं” है। मामले में केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि डीएमसी एक वैधानिक निकाय है और इसकी रिपोर्ट निचली अदालत द्वारा किसी भी समय मांगी जा सकती है। भले ही अभियोजन उस पर भरोसा न करने का फैसला करे। उन्होंने कहा कि आरोपी या पीड़ित रिपोर्ट पर भरोसा कर सकते हैं। मेहता ने कहा कि कुछ रिपोर्ट जहां स्वस्थापित निकायों की हैं, डीएमसी एक वैधानिक निकाय है।
डीएमसी की तथ्यान्वेषी रिपोर्ट में विधानसभा चुनावों के दौरान भाषणों के जरिये कथित तौर पर लोगों को “भड़काने” के लिये भाजपा के एक नेता की तरफ इशारा किया गया है। डीएमसी की रिपोर्ट पर भाजपा ने आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया था, कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग भगवा पार्टी के खिलाफ निराधार आरोप लगा रहा है। बता दें कि डीएमसी की 130 पन्नों की रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस पर भी “कार्रवाई न करने” का आरोप लगाया गया है।