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विजय गोयल की मनमानी देख संगठन नहीं देता उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी!

राज्यसभा सांसद विजय गोयल के लिए एक बात मशहूर है कि वे जब भी, जहां रहे उन्होंने अपनी पूरी मनमानी की। संगठन के सदस्य उनकी मनमानी से खासे परेशान रहते हैं।

नई दिल्ली : राज्यसभा सांसद विजय गोयल के लिए एक बात मशहूर है कि वे जब भी, जहां रहे उन्होंने अपनी पूरी मनमानी की। संगठन के सदस्य उनकी मनमानी से खासे परेशान रहते हैं। चर्चा तो यहां तक है कि कुछ नेताओं की टोली अभी उनके दम पर विधानसभा चुनाव की टिकट पाने का दम भर रही है। हालांकि देखने वाली बात यह होगी कि मनोज तिवारी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते गोयल कितने कामयाब हो पाते हैं क्योंकि बीते नौ दिसंबर को ही प्रदेश उपाध्यक्ष पद से विजय गोयल के चहेते जयप्रकाश को मुक्त कर दिया गया था। 
बताया जाता है कि इस पर गोयल खूब बिलबिलाए थे, लेकिन उनकी एक न चल सकी। बैठक में उन्होंने जब ऐतराज जताया तो मनोज तिवारी ने मुस्कुराते हुए उनकी बात को सुनकर अनसुना कर दिया था। दिल्ली भाजपा के राजनीतिक गलियारे में हालांकि जयप्रकाश का चुनाव से ऐन वक्त पहले प्रदेश से हटाया जाना गोयल के कद को कम करने का संकेत देता है और यह भी हवा है कि गोयल की नजदीकी का नुकसान जयप्रकाश को आखिर उठाना ही पड़ा। 
इस मुद्दे को जब तिवारी बनाम गोयल हवा दी गई तो कहा गया कि जयप्रकाश पर उत्तरी नगर निगम में स्थायी समिति अध्यक्ष का पद था, इसलिए उन्हें एक व्यक्ति दो पद का हवाला देकर प्रदेश से हटाया गया, लेकिन सवाल तो यह भी उठता है कि अप्रैल से लेकर दिसंबर तक उन्हें पहले ही क्यों नहीं हटाया गया था। बताया जाता है कि अनाज मंडी में हुए भीषण अग्निकांड में जयप्रकाश, गोयल को लेकर सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंचे थे, इसके बाद तिवारी और केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी पहुंचे थे। इस पर गोयल और जयप्रकाश को लेकर खूब इधर-उधर की बातें बनी थीं। 
बताया जाता है कि महत्वाकांक्षा के चलते ही विजय गोयल विजेन्द्र गुप्ता को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटवाकर खुद प्रदेश अध्यक्ष बन बैठे थे और उस समय उन्होंने अपनी मर्जी के चलते सभी 14 जिलाध्यक्ष बदल डाले थे और किसी की बात तक नहीं सुनी थी। यहां तक की संगठन का हस्तक्षेप भी न मानकर खूब मनमानी की थी। उनकी मनमानी और एकला चलो की नीति के चलते ही संगठन उन्हें दिल्ली में कोई और नई जिम्मेदारी देने से बचता है क्योंकि वे उस अमर बेल की तरह है, जो कि जिस पेड़ पर चढ़ते हैं उस पेड़ को ही सुखा देते हैं। 
इसी कारण दिल्ली से दूर करने को उन्हें राजस्थान से राज्यसभा सदस्य बनाया गया था, लेकिन वहां जितना सक्रिय होना चाहिए था उससे कहीं ज्यादा वे दिल्ली में ही सक्रिय बने रहते हैं। कुछ दिनों पहले उन्हें केन्द्रीय भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की ओर से पार्टी से अलग कार्यक्रम नहीं करने की हिदायत भी दी गई थी। अब आलम यह है कि प्रदेश से अलग हटकर कोई कार्यक्रम करने की सूरत में विजय गोयल खुद संबंधित इलाके के सक्रिय भाजपा कार्यकर्ताओं को फोन कर बुलाते हैं, लेकिन कार्यकर्ता असमंजस में रहते हैं कि क्या करें और क्या न करें। 
असल में गोयल के यहां जाने वाले कार्यकर्ताओं पर तिवारी कैंप की भी पूरी नजर बनी रहती है। इन दिनों चर्चा है कि गोयल के साथ कुछ नेता ऐसे जुड़े हैं जिन्हें भरोसा है कि गोयल उन्हें विधानसभा का टिकट दिलवाने में कामयाब रहेंगे, लेकिन अभी तो खुद उनकी नैया ही मझदार में है।

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