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करीब 4 महीने बाद आंदोलन स्थल पर पसरा सन्नाटा, आखिर कहां गए प्रदर्शनकारी किसान

कृषि कानून के खिलाफ हो रहे किसान आंदोलन को 134 दिन हो चुके हैं, लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों की संख्या अब बेहद कम हो चुकी है।

कृषि कानून के खिलाफ हो रहे किसान आंदोलन को 134 दिन हो चुके हैं, लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों की संख्या अब बेहद कम हो चुकी है। किसान अपनी फसल की कटाई और यूपी के पंचायत चुनाव के कारण आंदोलन स्थल से वापस अपने-अपने गंतव्य स्थान की ओर रुख कर चुके हैं। बॉर्डर पर पिछले कुछ दिनों से लगातार किसानों की संख्या कम होती जा रही है, हाल ये हो चुका है कि किसान नेता के होने के बावजूद भी आंदोलन स्थलों पर लोग नहीं दिखाई पड़ रहे है। बॉर्डर पर लगे मंच के सामने भी लोग अब इक्का दुक्का ही नजर आ रहें हैं और उनमें भी मंच के सामने बिछी त्रिपाल पर सोते या लेटे हुए नजर आ रहे हैं।
इस मसले पर गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे आंदोलन स्थल कमिटी के सदस्य जगतार सिंह बाजवा ने बताया कि, ”आंदोलन को चलाने के लिए जो संख्या होनी चाहिए वो यहां मौजूद है। लेकिन ये जरूर है कि बैसाखी का त्यौहार है तो फसल की कटाई शुरू हो चुकी है, इसके साथ उत्तरप्रदेश में पंचायती के चुनाव चल रहे हैं उसमें बहुत से लोग व्यस्त हैं। 10-15 दिन संख्या बढ़ाने का हमारा कोई उद्देश्य नहीं है, लोग अपनी खेती करने के बाद फिर वापस आएंगे और किसानों को भी तभी आना चाहिए, क्योंकि पहले हमारे लिए फसल है। 
भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि बॉर्डर पर हमारे नेता भी कम रहते हैं, दूसरा ये कटाई का वक्त चल रहा है और किसान के पास करीब 8 दिन हैं, वहीं पंचायत चुनाव एक देश का बड़ा चुनाव होता है ऐसे में हर व्यक्ति का लगाव होने का भी प्रभाव है, अगले 10 दिन बाद सामान्य संख्या हो जाएगी।
बॉर्डर पर बनाए गए बड़े-बड़े टेंट में किसान नहीं हैं, वहीं सड़कों पर भी पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ है। लंगर सेवा चालू है, लेकिन लंगर में बैठने के लिए किसान नहीं हैं। न सुबह के वक्त किसान नजर आ रहे हैं और न शाम के वक्त, बॉर्डर पर लगे हुए टेंट भी उखड़ने लगे हैं। हालांकि किसान उनकी जगह दूसरे जगह टेंट बना रहे हैं, लेकिन उनमें रुकने के लिए किसान फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं। हालांकि जिस तरह किसान फसल की कटाई और पंचायत चुनाव में व्यस्थ दिख रहे हैं, उससे ये साफ कहा जा सकता है कि अगले कुछ और दिनों तक गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों की संख्या बेहद कम रहेगी।

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