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महामारी के बीच यौनकर्मियों को सूखा राशन दें राज्य : SC

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सभी राज्य सरकारों को पर्याप्त मात्रा में और एकरूपता के साथ यौनकर्मियों को सूखा राशन उपलब्ध कराने के निर्देश जारी किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सभी राज्य सरकारों को पर्याप्त मात्रा में और एकरूपता के साथ यौनकर्मियों को सूखा राशन उपलब्ध कराने के निर्देश जारी किए हैं। 
शीर्ष अदालत ने सभी राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि कोविड-19 के मद्देनजर राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) द्वारा चिह्न्ति यौनकर्मियों को पर्याप्त मात्रा और एकरूपता में सूखा राशन दिया जाए। 
न्यायाधीश एल. नागेश्वर राव, हेमंत गुप्ता और अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने राज्यों से कहा कि वे यौनकर्मी (सेक्स वर्करों) की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन और विधिक सेवा प्राधिकरणों से मदद लें और महामारी के दौरान उनकी मदद करें। 
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील को यौनकर्मियों की पहचान करने में देरी पर भी सवाल पूछे और जोर दिया कि यह किसी के जीवित रहने का सवाल है। 
पीठ ने उत्तर प्रदेश के वकील से कहा कि अगर वह चार सप्ताह के बाद भी यौनकर्मियों की पहचान करने में विफल रहे हैं तो यह उनकी क्षमता को दर्शाता है। पीठ ने कहा, ‘आप हमें पहचाने गए व्यक्तियों की संख्या के बारे में बताएं।’ 
पीठ ने दोहराया कि लोगों के कल्याण से जुड़ी चीजों में कोई देरी नहीं होनी चाहिए। 
मामले में एमिकस क्यूरिया (अदालत के सहयोगी) वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत भूषण ने उत्तर प्रदेश द्वारा दायर हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि राज्य उनकी पहचान का खुलासा किए बिना यौनकर्मियों को राशन देने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि लगभग 27,000 यौनकर्मी उत्तर प्रदेश में एनएसीओ के अनुसार पंजीकृत हैं और शीर्ष अदालत के 29 सितंबर के आदेश के अनुरूप काम इस दिशा में काम किया जा रहा है, जिसमें राज्यों से उन्हें सूखा राशन प्रदान करने को कहा गया है। 
उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि वे यौनकर्मियों की पहचान करने की प्रक्रिया में हैं और जिन लोगों की पहले से पहचान है, उनके पास राशन कार्ड हैं और उन्हें राशन उपलब्ध कराया जा रहा है। 
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन और विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा चिह्न्ति यौनकर्मियों को पहचान का सबूत पेश करने के लिए बाध्य किए बगैर ही सूखा (शुष्क) राशन उपलब्ध कराएं। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही सभी राज्यों को चार सप्ताह के भीतर इस आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया था। 

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