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सुप्रीम कोर्ट ने गरीब विद्यार्थियों को गैजेट्स, इंटरनेट उपलब्ध कराने संबंधी दिल्ली HC के आदेश पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसमें कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के अंतर्गत आने वाले छात्रों को गैजेट्स और इंटरनेट पैकेज उपलब्ध कराने के लिए निजी और सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसमें कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) अथवा वंचित समूह श्रेणी के अंतर्गत आने वाले छात्रों को गैजेट्स और इंटरनेट पैकेज उपलब्ध कराने के लिए निजी और ‘केन्द्रीय विद्यालयों’ जैसे सरकारी स्कूलों को निर्देश दिया गया था।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने पिछले वर्ष 18 सितंबर के हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की। पीठ में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन भी शामिल थे।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘नोटिस जारी करें। इस बीच हाई कोर्ट के आदेश के लागू होने पर रोक रहेगी।’’ हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने निर्देश दिया था कि गैजेट और इंटरनेट पैकेज की लागत ट्यूशन शुल्क का हिस्सा नहीं है और ये छात्रों को स्कूलों द्वारा मुफ्त प्रदान की जानी चाहिए।
खंडपीठ ने यह भी कहा था कि गैर वित्तपोषित निजी स्कूल, शिक्षा के अधिकार कानून-2009 के तहत उपकरण और इंटरनेट पैकेज खरीदने पर आई तर्कसंगत लागत की प्रतिपूर्ति राज्य से प्राप्त करने के योग्य हैं। फैसले पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन ‘जस्टिस फॉर ऑल’ को भी नोटिस जारी किया, जिसकी और अन्य की याचिका पर हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने पीठ को बताया कि उच्च न्यायालय के फैसले से सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है। सिंह ने कहा, हम पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र में काफी खर्च कर रहे हैं। गैर सरकारी संगठन की याचिका पर हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था।
याचिका में केंद्र और दिल्ली सरकार को गरीब बच्चों को मोबाइल फोन, लैपटॉप या टैबलेट मुहैया कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया था ताकि वे भी कोविड-19 लॉकडॉउन की वजह से चल रही ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ ले सके। हाई कोर्ट ने कहा था कि उपकरण उपलब्ध नहीं होने के चलते एक ही कक्षा में पढने वाले ऐसे छात्रों को अन्य छात्रों की तुलना में ”हीन भावना” महसूस होगी जोकि उनके ”मन और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है।”
उसने कहा था कि यदि एक स्कूल स्वयं ही ऑनलाइन प्रणाली के जरिए कक्षाएं संचालित करने का फैसला करता है तो ” उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) अथवा वंचित समूह श्रेणी के अंतर्गत आने वाले छात्रों को भी इसी तरह की सुविधाएं एवं उपकरण उपलब्ध हों।”
अदालत ने कहा था कि महामारी के वर्तमान दौर में ऐसे छात्रों को आवश्यक उपकरण उपलब्ध नहीं कराना, विशेषतौर पर शिक्षा के अधिकार कानून-2009 के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। हाई कोर्ट ने गरीब और वंचित विद्यार्थियों की पहचान करने और उपकरणों की आपूर्ति करने की सुचारु प्रक्रिया के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया था।
समिति में केंद्र के शिक्षा सचिव या उनके प्रतिनिधि, दिल्ली सरकार के शिक्षा सचिव या उनके प्रतिनिधि और निजी स्कूलों का एक प्रतिनिधि शामिल करने के निर्देश दिये गये थे। अदालत ने यह भी कहा था कि समिति गरीब और वंचित विद्यार्थियों को दिए जाने वाले उपकरण और इंटरनेट पैकेज के मानक की पहचान करने के लिए मानक परिचालन प्रकिया (एसओपी) भी बनाएगी।

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