दिल्ली की एक अदालत ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में यहां जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पास हिंसक प्रदर्शन के संबंध में गिरफ्तार किए गए दो लोगों को जमानत देने से इनकार कर दिया।
अदालत ने कहा कि दोनों के खिलाफ गंभीर आरोप लगे हैं और इस बात की आशंका जायज है कि अगर उन्हें रिहा किया गया तो वह फिर ऐसी वारदात में शामिल हो सकते हैं।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रजत गोयल ने समीर और मोहम्मद हनीफ की याचिका को खारिज कर दिया और उन्हें 31 दिसंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
अदालत ने कहा, “दी गई दलीलों और आरोपियों के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों के मद्देनजर, और चूंकि मामले में जांच अभी शुरुआती अवस्था में है, इसलिए इस बात की वाजिब आशंका है कि आरोपी मोहम्मद हनीफ को रिहा किया गया तो वह इसी तरह की घटना में फिर शामिल हो सकता है, और इस अवस्था में उसकी रिहाई शांति और सद्भाव के अनुकूल नहीं है।”
अदालत ने हालांकि कहा कि वह मामले के गुणदोष पर कोई राय जाहिर नहीं कर रही है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने अदालत से कहा कि दोनों ने इलाके में पुलिस बूथ को जलाया और पुलिस पर पत्थर फेंके, जिससे कई लोग घायल हुए।
अदालत ने मंगलवार को 10 लोगों- हनीफ, दानिश उर्फ जाफर, समीर अहमद, दिलशाद, शरीफ अहमद, मोहम्मद दानिश, यूनुस खान, जुम्मन, अनल हसन, अनवर काला को 31 दिसंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।
दोनों आरोपियों के वकील ने अदालत से कहा कि उन्हें गलत तरह से फंसाया गया है और दिल्ली पुलिस उन्हें बलि का बकरा बना रही है।
समीर के वकील ने कहा कि वह एक बाइक मैकेनिक है और पुलिस ने कथित रूप से उसे उसके घर से उठाया।
जांच अधिकारी ने कहा कि हिंसा के आरोपियों की पहचान करने वाले पुलिस अधिकारियों के बयान के आधार पर गिरफ्तारियां की गई हैं। इसके अलावा आरोपियों के बयान भी हैं।