भागलपुर : विजयादशमी भारत के स्वर्णिम और समृद्ध इतिहास से ही जुड़ा एक विशेष पर्व है जिसे हम दशहरा के नाम से भी जानते हैं। इस संबंध में राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत व अखिल भारतीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार केन्द्र संस्थापक दैवज्ञ पं. आर. के. चौधरी बाबा भागलपुर, भविष्यवेत्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने बताया कि विजयादशमी नाम में विजय शब्द होने से ही आभास हो जाता है कि यह विजय का पर्व है पर विजयादशमी का पर्व न केवल विजय बल्कि धार्मिक, अध्यात्मिक, दार्शनिक और सामाजिक सभी दृष्टियों से अति महत्वपूर्ण हैं।
पौराणिक व्याख्यानों और वैदिक गणनाओं के अनुसार लाखों वर्ष पूर्व त्रेता युग में इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण के अहंकार को नष्ट कर उनका संहार किया था। इसलिए इस दिन को अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि अधर्म पर धर्म की विजय होने से ही इसे विजयादशमी का नाम दिया गया। इस दिन दस सिर वाले रावण का प्रभु श्रीराम ने संहार किया। शास्त्रोंक्त दृष्टि से विजयादशमी के इस दिव्य दिवस को दस प्रकार के विकारों-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा, चोरी का हरण करके सत्प्रेरणा देने वाला पर्व भी माना जाता है इसलिए इसे दशहरा भी कहते हैं।
हर वर्ष की भॉति इस वर्ष विजयादशमी आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को मनाया जाएगा। पंचांगों के अनुसार 19 अक्टूबर 2018 को आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि है। अत: सम्पूर्ण भारतवर्ष में विजयादशमी मनाया जाएगा। इस दिन पूर्व दिशा की यात्रा और नीलकंठ पक्षी के दर्शन को शुभ माना जाता है। दिन के अनुसार यात्रा की दिशा निर्धारित है। ऐसा शास्त्रोंक्त नियम है। विजयादशमी का पर्व अति महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन आरम्भ किये गये शुभ कार्यो में सफलता प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मन में यदि कोई शुभ संकल्प किया जाय तो वह अवश्य पूर्ण होता है।