नई दिल्ली : आपने हिन्दी फिल्म ‘लावारिस’ का यह गाना तो सुना ही होगा, अपनी तो जैसे-तैसे कट जाएगी, ‘आप’ का क्या होगा जनाब-ए-आली? ऐसे ही हालात कुछ आज दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) के साथ बन गए हैं। दिल्ली की सातों सीटों पर दो लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत का दावा करने वाली आप के पांच उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे जिनमें से तीन की जमानत जब्त हो गई। वहीं, दो उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे। हालात ये रहे कि चुनाव परिणाम के दिन पार्टी मुख्यालय और लोकसभा चुनाव दफ्तरों से भी कार्यकर्ता गायब दिखे।
गठबंधन न होने के लिए कांग्रेस को कोसने वाली आप को समझ नहीं आ रहा अब उसका क्या होगा। 2015 के विधानसभा चुनावों में ऐतिहाासिक जीत हासिल करने वाली आप को इन चुनावों परिणामों ने सोचने पर मजबूर कर दिया है। दिल्ली की सातों सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आप सहित सभी दलों का जिस अंदाज में सूपड़ा-साफ कर दिया है। उससे आप का सोचना बनता भी है। क्योंकि दिल्ली में भाजपा के साथ सीधी लड़ाई की बात करने वाली आप के लिए सबसे बड़ा सेट बैक है। यह उसके लिए अच्छे संकेत नही हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो आप के लिए लोकसभा चुनाव में खुद के हारने से ज्यादा अधिक कांग्रेस का मजबूत होना अधिक नुकसानदायक साबित होगा। क्योंकि यह सर्वविदित है कि कांग्रेस का वोट अपनी ओर खींचकर ही आप 2015 में 70 में से 67 सीटें जीत पर दिल्ली की सत्ता में आई थी। उसके बाद दिल्ली में 2017 में हुए नगर निगम चुनाव में आप दूसरे नंबर की पार्टी जरूर बनी मगर सत्ता में नही आ सकी। इसके साथ ही दिल्ली में दो विधानसभा उप चुनाव हुए हैं इनमें आप एक चुनाव जीती है और एक हारी है। मगर इस लोकसभा चुनाव में जो परिणाम सामने आये हैं।
इसके बारे में आप को अनुमान भी नहीं था कि हालत इतनी खराब हो जाएगी। इस हालत के बाद आप को आगामी विधानसभा चुनावों में अपना अस्तित्व बचाने की जंग लड़नी होगी। इसके अलावा इन चुनाव परिणामों के बाद जिस एक और बात के सामने निकलकर आने की आंशका है वो आप में दो-फाड़ होना। हालांकि अब इसकी गुंजाइश बहुत ज्यादा है लेकिन पार्टी इससे कैसे निबटेगी यह उसके लिए अलग सरदर्दी साबित होगी। ऐसे में आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल के लिए दो सबसे बड़ी चुनौती होंगी। पहली तो अपनी पार्टी में फूट से बचाना, दूसरी विधानसभा चुनावों में अपने पार्टी के अस्तित्व की चुनौती से निपटना।
– अमित कुमार