जिक्र दिल्ली पुलिस और दिल्ली की तीस हजारी अदालत का हो, ऐसे में भारत की पहली दबंग महिला आईपीएस किरण बेदी हवलदार सिपाहियों को याद न आएं, ऐसा असंभव है। हां, यह अलग बात है कि बेबाक-बेखौफ किरण बेदी गाहे-ब-गाहे तिहाड़ जेल के कैदियों को भी याद आती हैं।
17 फरवरी, 1988 को दिल्ली की इसी तीस हजारी कोर्ट में वकीलों से सीधा मुचैटा लेने वाली, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार को दिल्ली का दिल समझे जाने वाले कनाट प्लेस में सरेआम लदवा कर उठवा ले जाने के बाद ‘क्रेन-बेदी’ के नाम से चर्चित हुईं किरण बेदी, देश में मौजूद भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) लॉबी (गुट) को कभी फूटी आंख नहीं सुहाई थीं।
जिसका नतीजा ही रहा कि किरण बेदी आईपीएस रहते-रहते अपनी जिंदगी में कभी भी दिल्ली की पुलिस कमिश्नर नहीं बन पाईं। किसी जमाने में अपनो के कथित ‘घात’ का शिकार बनी वही दबंग किरण बेदी मंगलवार को दिल्ली में पुलिस मुख्यालय के बाहर सड़क पर उतरे हवलदार सिपाहियों को बहुत याद आईं।
मंगलवार को पुलिस मुख्यालय घेरने वालों में शामिल एक बीमार महिला हवलदार ने कहा, “हमारा यह गॉल्फ-1 (मौजूदा पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक) किसी काम का नहीं है। आज इसकी जगह पर अगर किरण बेदी मैडम होतीं, तो हमें मजबूर होकर सड़क पर भला क्यों उतरना पड़ता? किरण मैडम (किरण बेदी) महकमे के हवलदार सिपाहियों की बहुत सुनती थीं। मैंने तो यही सुना है।
यह कमिश्नर तो तीस हजारी कोर्ट में मरते-मरते बचे अस्पताल में दाखिल कर्मचारियों को देखने भी नहीं गया। दफ्तर में बैठे बैठे ही मोनिका मैडम (डीसीपी उत्तरी जिला मोनिका भारद्वाज) और संजय सिंह (तीस हजारी कांड में उत्तरी परिक्षेत्र के विशेष पुलिस आयुक्त कानून-व्यवस्था की कुर्सी से हाथ धो चुके) ने अपनी गर्दन बचाने के लिए नीचे वालों को ही सस्पेंड कर दिया। जबकि नीचे वालों ने वही किया जो अफसरों ने कहा। किरण बेदी मैडम तो सबसे आगे खड़ी होकर पहले सब कुछ अपने ही ऊपर ले लेतीं।”
धरना-प्रदर्शन कर रहे नाराज पुलिसकर्मी अपने मौजूदा अफसरों की मौजूदगी में ही चीख-चिल्ला रहे थे कि ‘किरण बेदी लाओ दिल्ली पुलिस बचाओ’। नाराज पुलिस कर्मियों के इस व्यवहार से साफ जाहिर हो रहा था कि, वे दिल्ली पुलिस के मौजूदा पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक से किस कदर खफा हैं।
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अगर इस कदर खून के आंसू अमूल्य पटनायक ने मातहतों को तीस हजारी कांड में न रुलाये होते तो शायद हवलदार सिपाही मंगलवार को सड़क घेर कर अपनो का न तो दिन ‘अमंगल’ करते, न ही शायद उन्हें 17 फरवरी, 1988 यानी अब से करीब 31 साल पहले हुए तीस हजारी कांड की ‘लीडर’ कही-सुनी जाने वाली किरण बेदी, अमूल्य पटनायक की पुलिस के दौर में याद आतीं।