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देशद्रोह है 370 का समर्थन!

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जम्मू-कश्मीर में लगातार हो रहे आतंकवादी हमलों ने हर भारतीय को झकझोर कर रख दिया है। अब समय आ गया है कि भारत का नेतृत्व लक्षणों से जूझने की बजाय मर्ज पर केन्द्रित हो। आज तक हमारी नीति कश्मीर के संबंध में बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण रही है। 13 दिसम्बर, 2001 को भारत की संसद पर हमला हुआ। परमात्मा ने स्वयं हमारे राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा की। जवानों ने अपनी शहादत देकर 200 से ज्यादा सांसदों की जान की रक्षा की। अगर हमलावर संसद में घुस जाते तो न जाने क्या हो जाता। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी पर सारे देश की निगाहें लगी हुई थीं। उन्होंने कहा लड़ाई आर-पार की होगी। सीमाओं पर फौजें तैनात कर दी गईं। कई महीने फौज तैनात रही, लेकिन गोली एक नहीं चली। काश ! अटल जी ने भारत की मनःस्थिति को समझा होता। आज भी शहीदों की विधवाओं और परिजनों की आंख में आंसू हैं, समूचा देश आहत है। आंखाें की आग और आंखों में पानी का एक ही संदेश झलक रहा है-
कु​त्सित कलंक का बोध नहीं छोड़ेंगे
इसलिए बिना प्रतिशोध नहीं छोड़ेंगे।
एक्शन के साथ-साथ अब वक्त आ गया है कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए कदम आगे बढ़ाए जाएं। जो लोग अनुच्छेद 370 का समर्थन कर रहे हैं, उनसे सावधान रहने की जरूरत है। मैं आज उस इतिहास में नहीं जाना चाहता कि पंडित ​जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला की दोस्ती के चलते भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को शामिल करना एक भयंकर भूल थी। घाटी का एक स्कूल मास्टर शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बन गया। अब इस बात का विश्लेषण करने का वक्त आ चुका है कि अनुच्छेद 370 के क्या दुष्परिणाम निकले।
-संपूर्ण भारतवर्ष में एक ही नागरिकता है, जिसे हम भारतीय नागरिकता कहते हैं। जम्मू और कश्मीर में एक ‘राज्य नागरिकता’ की भी व्यवस्था है। यहां के नागरिकों को भारत के अन्य नागरिकों जैसी सारी सुविधाएं हैं, परन्तु अन्य प्रदेशों के नागरिकों को यहां ‘प्रदेशी नागरिकता’ प्राप्त लोगों जैसी सुविधा प्राप्त नहीं है। इसके परिणामस्वरूप इस प्रदेश का नागरिक तो संपूर्ण भारत में जहां भी चाहे किसी भी संपत्ति को खरीद और बेच सकता है, परंतु यहां जमीन खरीदने-बेचने के लिए प्रदेश की नागरिकता चाहिए। दूसरे प्रदेश का व्यक्ति वहां जमीन नहीं ले सकता।
-यहां के प्रदेश की नौकरियों का जहां तक संबंध है, वहां केवल इसी राज्य के नागरिकों का उन पर अधिकार है, अन्य लोग तो यहां आवेदन तक नहीं दे सकते।
-यहां रह रहे या नियुक्त अन्य प्रदेशों के नागरिक, यहां तक कि बाहर से आए राज्यपाल भी, यहां विधानसभा में मतदान नहीं कर सकते, जबकि लोकसभा में वह मतदान कर सकते हैं। थोड़ी विडम्बनाएं और देखेंः
-इस प्रदेश की महिला का यदि किसी अन्य प्रदेश में विवाह होता है तो उसे अपनी पैतृक संपत्ति और प्रदेश की नागरिकता से हाथ धोना पड़ सकता है, परंतु अगर वह किसी पाकिस्तानी से विवाह करती है तो वह यहां की नागरिकता प्राप्त कर सकता है।

-भारत के संविधान के केवल अनुच्छेद-1 और अनुच्छेद-370 की ही यहां प्रासंगिकता है, अतः भले आप इसे अपना अभिन्न अंग कहते रहिए, इस पूरे भारत में जम्मू-कश्मीर ही ऐसा राज्य है जिसका अलग संविधान है। भारत के संविधान से इसे कुछ लेना-देना नहीं
-सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित सारे फैसले भी यहां लागू नहीं होते और संसद द्वारा पारित वही कानून यहां लागू हो सकता है जिसकी जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पुष्टि कर दे। आपने देखा होगा संसद द्वारा पारित कानूनों में यह स्पष्ट लिखा रहता है-‘‘Applicable in whole Indian Union, Excepting J & K.” सचमुच यह कितने शर्म की बात है। यहां ध्वज भी एक नहीं दो हैं।

एक ध्वज इस प्रदेश का है, जो तिरंगे के साथ-साथ ही फहराया जाता है। अति संक्षेप में इस अनुच्छेद-370 को लेकर पंडित नेहरू बाबा साहब के पास पहुंचे और तर्क-कुतर्क देकर उनकी राय जाननी चाही। बाबा साहब बोले-‘‘ऐसा प्रावधान घातक सिद्ध होगा और इसके फलस्वरूप बड़ी अलगाववादी धारणा पनपेगी, आप इसका जिक्र ही न करें।’’ पंडित नेहरू ने किसी की भी नहीं सुनी। कड़े विरोध के बावजूद यह अनुच्छेद पारित हो गया। आज तक भारत सरकार अरबों रुपए का धन झोंकती रही है ताकि कश्मीर के अवाम को कोई तकलीफ न हो लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 लागू रखना राष्ट्रद्रोह है या नहीं? अगर यह राष्ट्रद्रोह है तो उसको हटाया जाना ही उचित है।

पाकिस्तान को सर्वाधिक अनुकूल राष्ट्र के दर्जे को वापिस लेने में देरी हुई, वैसे ही अलगाववादियों की सुरक्षा वापिस लेने में भी देरी हुई। बेहतर होगा अनुच्छेद-370 खत्म करने में देरी न की जाए, और भी बेहतर होगा कि इस संभावना को टटोला जाए कि क्या इस राज्य को तीन भागों में बांटा जा सकता है? आबादी के असंतुलन से वहां की स्थिति आैर भी बिगड़ी है। कश्मीरी पंडितों को वहां फिर से बसाने के लिए भी अब तक कुछ नहीं किया गया। अब समय आ गया है कि जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में लाने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं, इस बात की परवाह नहीं की जानी चाहिए कि दुनिया इस बारे में क्या कहती है?

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