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74 साल का इंसानी अलगाव

1947 में हुए भारत के विभाजन की पीड़ा ऐसी महात्रासदी है जिसका वर्णन शब्दों में संभव नहीं है क्योंकि उस दौरान न केवल मानवता को रौंदा गया बल्कि इंसान से हैवान बनने के इतिहास को लिखा गया और एक ही संस्कृति को मानने वाले लोगों को उनके मजहब के आधार पर बांट कर आपसी दुश्मन बनाया गया।

1947 में हुए भारत के विभाजन की पीड़ा ऐसी महात्रासदी है जिसका वर्णन शब्दों में संभव नहीं है क्योंकि उस दौरान न केवल मानवता को रौंदा गया बल्कि इंसान से हैवान बनने के इतिहास को लिखा गया और एक ही संस्कृति को मानने वाले लोगों को उनके मजहब के आधार पर बांट कर आपसी दुश्मन बनाया गया। पक्के तौर पर यह काम मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना और अंग्रेजों की मिलीभगत से अंजाम दिया गया जिसका सबसे खतरनाक अंजाम पंजाब के लोगों ने भुगता क्योंकि 1947 के दौरान सबसे ज्यादा मारकाट पंजाब में ही मची और इस दौरान हुए व्यापक कत्लेआम के दौरान कुल मारे गये दस लाख लोगों में से अकेले पंजाब में ही आठ लाख लोगों का कत्ल हुआ एवं कुल विस्थापित हुए एक करोड़ बीस लाख लोगों में से एक करोड़ लोग पंजाब से ही विस्थापित हुए। इसलिए सबसे पहले यह समझा जाना चाहिए कि पाकिस्तान का वजूद उन दस लाख लोगों के खून का कर्जदार है जिनकी लाशें बिछा कर इसे तामीर किया गया। यह कर्ज कोई छोटा-मोटा कर्ज नहीं है जिसकी भरपाई किसी भी दूसरी शक्ल में की जा सकी क्योंकि उस मारकाट के दौरान परिवार बिछुड़ गये और इस तरह बंट गये कि मां पाकिस्तान में ही रह गई और बाप भारत में चला आया। भाई से भाई बिछुड़ा और मां से बेटी बिछुड़ गई। जो लोग पाकिस्तान में सरमायेदार कहलाये जाते थे वे भारत में भिखारी की तरह बदहवास घूम रहे थे और ऐसा ही आलम पाकिस्तान की तरफ भी था। 
पंजाब की जमीन को भारत व पाकिस्तान में बांटा गया और इस तरह बांटा गया कि एक ही जिले की कुछ तहसीलें पाकिस्तान में चली गईं और कुछ भारत में आ गईं। बस्तियां उजड़ गईं, शहर एक धर्म के मानने वाले लोगों से वीरान कर दिये गये। जो लोग सदियों से एक साथ एक ही संस्कृति की रवायतों के मानते हुए जी रहे थे और एक ही भाषा बोलते थे उन्हें उनके धर्म के आधार पर अलग-अलग कर दिया गया और जमीन के एक हिस्से का नाम पाकिस्तान रख दिया गया। मगर जिन्ना अंग्रेजों के साथ मिल कर पानी पर लकीर खींच रहा था क्योंकि पूरे पंजाब का इंसानी जज्बा एक था मगर तब के मुल्ला-मौलवियों और कट्टरपंथियों को अपने साथ मिला कर मुस्लिम लीग मुसलमानों को अलग कौम साबित कर रही थी और इन्हें भारतीय मूल से जुदा बता रही थी। जबकि 1936 में पंजाब में हुए पहले प्रान्तीय एसेम्बली चुनाव में मुस्लिम लीग को मुसलमानों के लिए ही आरक्षित 84 सीटों में से केवल दो सीटें मिली थीं। इन चुनाव परिणामों से घबरा कर ही जिन्ना ने इसके बाद धर्म को राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग करने का फैसला किया था। मगर इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम पंजाब व बंगाल को ही भुगतना पड़ा। 
खैर आज यह पाकिस्तान गठन के विविध कारणों में जाने का समय नहीं है बल्कि विभाजन की विभीषिका में 74 साल पहले दो बिछुड़े हुए भाइयों के पुनर्मिलन पर विचार करने का समय है। ये दो भाई पाकिस्तान के सादिक खां और भारत के सिक्का खां हैं जिनका मिलन पिछले दिनों दो वर्षों के कठिन प्रयासों के बाद यूट्यूब पर चलने वाली पंजाबी लहरवीडियो के जरिये हुआ। भारत-पाक सीमा पर बने करतारपुर साहब कारीडोर में इन दोनों भाइयों की मुलाकात हुई। इनमें से सिक्का खां भारत के भटिंडा जिले के गांव फूलेवाल में रहते हैं जबकि सादिक खां अपने देश के फैसलाबाद (लायलपुर) जिले के गांव बोगरगांव में रहते हैं। जब 1947 में दोनों बिछुड़े थे तो सिक्का खां की उम्र मुश्किल से दो साल थी और सादिक खां की आठ साल के करीब। सिक्का खां अपनी मां के साथ भारत में ही बिछुड़ गये थे और उनके पिता जैसे-तैसे अपने बड़े बेटे सादिक खां को लेकर पाकिस्तान की सीमा में चले गये थे। सिक्का खां की मां ने बाद में अपने बड़े बेटे के गम में आत्महत्या कर ली। मगर सिक्का खां को भारतीय गांव में रहने वाले सिखों व हिन्दुओं ने पूरी हिफाजत दी जहां वह खेतीहर मजदूरी वगैरा करके अपना गुजारा चलाते हैं। मगर पाकिस्तान में बैठे उनके बड़े भाई सादिक खां को भरोसा था कि एक न एक दिन उनकी मुलाकात अपने छोटे भाई से जरूर होगी जिसके लिए वह प्रयास भी करते रहते थे मगर ‘पंजाबी लहर’  यूट्यूब कार्यक्रम चलाने वाले जब दो साल पहले एक दिन उनके गांव पहुंचे तो उनकी व्यथा सोशल मीडिया पर सार्वजनिक हो गई जिसके जवाब में भारत के फूलेवाल गांव के एक नागरिक ने पंजाबी लहर से सम्पर्क करके सिक्का खां के बारे में बताया और तब दोनों तरफ की सरकारों की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों भाइयों का मिलन करतारपुर साहब में कराने की व्यवस्था की गई। अब उम्र के इस पड़ाव में सिक्का खां चाहते हैं कि वह अपने बड़े भाई के साथ रहें और बीच-बीच में भारत के अपने गांव आते-जाते रहें। इसके ​लिए वह पाकिस्तान की सरकार से वीजा देने की गुहार लगा रहे हैं। सादिक खां का अपना भरा-पूरा परिवार है और सिक्का खां की परिवार के साथ इस उम्र में रहने की चाहत समझी जा सकती है। 
दरअसल यह दास्तां है पाकिस्तान तामीर करने वाले ऐसे ‘बदजुबान’ और  ‘बदवक्त’ लोगों की जिन्होंने अपनी हुकूमत काबिज करने की हवस में इंसानों पर बरबादी मुसल्लत की और खुद को कभी ‘बाबा-ए कौम’ या ‘कायदेआजम’ बताया। हकीकत और सच को कभी कोई नहीं बदल सकता। और हकीकत यह है कि पाकिस्तान बनने के बाद जब लाहौर के करीब बने मुसलमान शरणार्थियों के वाल्टर शिविर में दिसम्बर 1947 में जब मुहम्मद अली जिन्ना गया तो वहां मौजूद लोगों ने उसके सामने मातम कर-करके उसे आप बीती सुनाई और अपनी बदहाली का उसे ही जिम्मेदार माना। जिन्ना वहां ज्यादा देर रुक नहीं सका और  वापस चला गया। मगर अगले दिन पाकिस्तान टाइम्स में वहां की हुकूमत ने खबर छपवा दी कि शरणार्थी शिविर में पाकिस्तान का स्वागत किया गया। यह है जिन्ना के पाकिस्तान के बेपर्दा हकीकत। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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