भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनन्दन के भारत वापस आने के साथ ही भारत–पाक के बीच 14 फरवरी को पुलवामा में हुए हमले के बाद भारत द्वारा 26 फरवरी को खैबर पख्तूनवा के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद आतंकी ठिकाने पर की गई जवाबी कार्रवाई के बाद पाक वायुसेना की हमलावर सैनिक कार्रवाई के दौर का एक अध्याय समाप्त हो चुका है मगर इस दौरान जिस तरह दुनियाभर के महत्वपूर्ण देशों ने संयम बरतने की अपील प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तानी वजीर-ए- आजम इमरान खान से की है उसका सबब भारतीय उपमहाद्वीप के इन दोनों परमाणु शक्ति से लैस देशों से धैर्य बनाये रखने का है।
दरअसल कूटनीतिक और सैनिक मोर्चे पर दोनों ही देशों ने जिस तरह एक-दूसरे से बढ़त लेने की कोशिश की है उसी का नतीजा है कि अमेरिका, रूस व चीन जैसे शक्तिशाली तीनों ही देश बीच–बचाव करते नजर आ रहे हैं। मगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जिस तरह आतंकवाद के मुद्दे पर स्वयं को भारत के पक्ष में खड़ा हुआ दिखाते हुए पाकिस्तान को पुचकारा है उसने जाहिराना तौर पर चीन को पाकिस्तान के पाले में खड़ा कर दिया है। अमेरिका ने भारत की बालाकोट में की गई कार्रवाई को असैनिक दर्जे में मानते हुए आतंकवाद विरोधी मुिहम में रखा है जबकि चीन ने किसी भी देश की भौगोलिक संप्रभुता का सम्मान करने की बात को तरजीह दी है।
हकीकत यह है कि आतंकवाद के खिलाफ दुनिया के सभी देश फतवे तो जारी कर रहे हैं मगर पाकिस्तान को इसका केन्द्र मानने का जिक्र करने से भी परहेज कर रहे हैं। चीन ने तो यहां तक कह दिया है कि पाकिस्तान स्वयं इसका भुक्तभोगी है। यह स्थिति बताती है कि इन देशों के हित भारत और पाकिस्तान दोनों से ही किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं। एेसा नहीं है कि भारत इस हकीकत से वाकिफ नहीं है। इसे देखते हुए ही भारत ने अपनी तरफ से सैनिकीकरण को नकारते हुए बालाकोट कार्रवाई को असैनिक करार देते हुए साफ किया था कि यह पूरी तरह दहशतगर्दी को खत्म करने की दिशा में उठाया गया कदम था जिसका सम्बन्ध पाकिस्तान की सार्वभौमिकता को चुनौती देने का नहीं था।
मगर पाकिस्तानी वजीर-ए-आजम ने पुलवामा हमले के लिए जिम्मेदार मौलान मसूद अजहर की तंजीम जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई न करते हुए उलटे भारत से ही इसके सबूत मांग लिए तो भारत ने खुद आगे बढ़कर उसके खिलाफ कार्रवाई की। भारत की इस कार्रवाई के पीछे पूरा देश उठ कर खड़ा हो गया क्योंकि पाकिस्तान लगातार हमारे ही एक अभिन्न राज्य जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के जरिये अलगाववाद को पाल–पोस रहा है। अतः बहुत जरूरी यह है कि किसी भी रूप में कश्मीर फिर से अन्तर्राष्ट्रीय विवाद का मुद्दा न बन पाए। यदि एक बार यह प्रक्रिया शुरू हो गई तो पाकिस्तान को भारत के साथ किए गए अपने सभी पुराने वादों और समझौतों को तोड़ने से नहीं रोका जा सकेगा।
इसलिए सबसे पहली प्राथमिकता कश्मीर समस्या का किसी भी सूरत में अन्तर्राष्ट्रीयकरण न होने देना है। जहां तक बालाकोट और उसके बाद कश्मीर में नियन्त्रण रेखा पर भारतीय वायुसेना के जांबाज लड़ाकू पायलटों के वीरतापूर्ण कारनामों का सवाल है तो उसका श्रेय केवल और केवल भारतीय वायुसेना को ही जाता है जिसने अपने धर्म और कर्त्तव्य को राष्ट्र सुरक्षा में समर्पित करने में क्षण भर भी नहीं लगाया। जाहिर तौर पर बालाकोट में जो कार्रवाई की गई थी वह हमारी वायुसेना द्वारा पूरी मेहनत व दूरदृष्टि के साथ सभी खतरों को ध्यान में रखते हुए उनका कारगर तोड़ का विकल्प रखते हुए पूरी रणनीतिक सोच के साथ की गई थी।
यह भारत की वायुसेना की रणनीतिक तैयारी का ही कमाल था कि 27 फरवरी की सुबह उसने पाकिस्तान की वायुसेना के जोरदार हमले को नाकाम कर दिया। वायुसेना को मालूम था कि पाकिस्तान के पास अत्याधुनिक अमेरिकी व चीनी लड़ाकू विमान हैं और उसे जरूरत पड़ने पर उनका मुकाबला मिग-21 व सुखोई विमानों से करना पड़ेगा जो तकनीकी दृष्टि से पिछली पीढ़ी के माने जाते हैं। अतः बालाकोट कार्रवाई से बौखलाए हुए पाकिस्तान के आधुनिकतम विमानों के हमलावर दस्ते को वापस मोड़ देना हमारी वायुसेना के लिए बहुत गंभीर चुनौती थी। मगर भारत के लड़ाकू जवानों का तो इतिहास रहा है कि उन्होंने दुश्मन के दांत सिर्फ अपने हौंसलों से ही खट्टे करने में भी कभी चूक नहीं की है।
चाहे वह भारत- चीन युद्ध के सूबेदार जोगिन्दर सिंह हों या 1965 की भारत-पाक लड़ाई के हवलदार अब्दुल हमीद हों, सभी ने अपने बुलन्द हौंसलों से हथियारों को कुन्द करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी महान परंपरा को निभाते हुए विंग कमांडर अभिनंदन ने वह कमाल कर दिया जिसकी उम्मीद अमेरिकी व चीनी फाइटर हवाई जहाजों से लैस पाकिस्तानी पायलटों को नहीं हो सकती थी। विंग कमांडर अभिनंदन ने अपनी जान की परवाह न करते हुए मिग-21 विमान में सवार रहते हुए ही एफ-16 विमान को हवा में ही ध्वस्त कर दिया और जब उनका विमान भी हमले की जद में आ गया तो वह पैराशूट से कूद गए।
दुर्भाग्य से उनका पैराशूट पाक अधिकृत कश्मीर के इलाके में खुला और वह पाकिस्तानी सेना के कब्जे में आ गए लेकिन इस जांबाज पायलट ने पूरे हिन्दोस्तान का माथा ऊंचा करते हुए साफ कर दिया कि वह उस हिन्दोस्तान का सिपाही है जिसकी सेना ने कभी अमेरिकी पैटर्न टैंकों को भी (1965 के युद्ध में ) दिवाली के अनार की तरह उड़ा दिया था। सनद रहना चाहिए कि अभिनन्दन ने भारत के वन्दन में अपनी पूरी हस्ती को दांव पर लगाते हुए पैगाम दिया कि,
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसके ये गुलिस्तां हमारा